स्पष्टाधिकारः १३ वि. भा.-त्रन्द्रग्रहणे तिथ्यन्ते ( पूतिकाले ) दिनदलात् (मध्याह्न कालात् ) प्राक्पश्चाद्वा वाभिघंटिकाभिः (यग्निनाभिघंटीभि: ) मुषों नतो भवति तत्सूर्यस्य नतळालमानं विहितं भवति । त्रिंशद्घटित्त्रशेषाभिस्तभिर्घटिकाभि- विपरीतं ( विलोमं ) अर्धरात्रात् शश ( चन्द्रः ) नतो भवति, अर्थाद्याभि घंटिकाभिस्तिथ्यन्ते रविर्ननस्ताभ्यस्त्रिंशद्वर्षाटिका विशोध्यशष्टं चन्द्रस्यार्धरात्रा द्विपरीतं नतं भवति यदि रवेः प्रक् तद चन्द्रस्य पश्चात् यदि रवेः पश्चात्तदा चन्द्रस्य प्रागर्धरात्रान्नतं भवति । रविग्रहणे यामभिर्वर्टिकाभिः सूर्यो न भवति ताभिरेव घटिकाभिश्चन्द्रोऽपि तस्मिन्नेव काले ननो भवतीति ॥२५-२६॥ अत्रोपपत्तिः पूर्णान्तिकाले चन्द्रग्रहणं भवति, पूर्णान्ते च रविचन्द्रौ षड्भान्तरितो भवतोऽत ऊर्धयाम्योत्तरवृत्ताद्याभिर्घटभिर्नतो रविस्त्रिशता रहिताभिस्ता भिघंटीभिर्विपरीतकपाले चन्द्रो न भवति, सूर्यग्रहणे सूर्याचन्द्रमसावेकराश्याद्य वयवे स्थितौ भवतस्तेनैककपाले तुल्या एव नतघंटिका भवन्तीति सर्वं ज्योतिविदा मतिरोहितमेवेति सिद्धान्तशेखरे ‘प्राक् पश्चाद्वा दिवसशफलाद्याभिरर्को घटीभि स्तिथ्यन्ते स्यान्नत उडुपतिस्ताभिरेवार्धरात्रात् । व्यस्तं चन्द्रग्रहणसमये वाऽभ्राम ३० च्युताभिः सूर्यग्रासे रविरिव विधुः स्यान्नतः प्राञ्प्रतीच्योः श्रीपत्युक्तमिदमा चार्मोक्तानुरूपमेवेति गणकॅविभाव्यम् ।२५-२६। अब ग्रहण में सूर्य और चन्द्र के नतकाल को कहते हैं । हि. भा. -चन्द्रग्रहण में पूर्णान्तिकाल में मध्याह्नकाल से पहले या पीछे जितनी घटी में रवि नत होता है वह सूर्य का नतकाल मान कथित है, तीस ३० में उस घटिका को घटाने से जो शेष रहता है उतनी ही संख्या करके चन्द्रनत होता है, किन्तु अर्धरात्र से विलोम प्रौव तिपन्त में जितनी घटी में रवि नत होता है उनमें तीस ३० घटी को घटाकर जो शेष रहता है वह चन्द्र का नत होता है, यदि रवि का प्राकूनत है तो चन्द्र का पश्चिमनत, यदि रवि का पश्चिमनत है तो चन्द्र का प्रानत अर्धरात्र से होता है, सूर्यग्रहण में रवि जितनी घटी करके नत रहता है उतनी ही घटी करके उसी काल में चन्द्र भी नत होता है इति ॥२५-२६॥ चन्द्रग्रहण पूर्णान्तकाल में होता है । पूर्णान्तकाल में रवि से चन्द्र छ: राशि के अन्तर पर रहता है इसलिये ऊध्र्वयाम्योत्तरवृत्त से जितनी घटी करके रविनत रहता है, उन घटी में तीस को घटा करके जो शेष रहता है उतनी घटी करके विपरीत कपाल में चन्द्रनत होता है । सूर्यग्रहण में सूर्य और चन्द्र एक ही राश्याद्यवयव में रहते हैं इसलिये एक कपाल में दोनों की तुल्य ही नत घटी होती है, सिद्धान्तशेखर में श्रपति ने आचार्योक्तानु रूप ही कहा है । उनके पद्य संस्कृतोपपत्ति में देखिये इति ॥२५-२६
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