ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते ११० R ८ अहगण ॐ कला, यहां भी एक दिन में शुशीघ्रोच्चगति अंशादिक =१२६’।७९।४४।। ६२ ३१ " भास्कर मत से ३१ के स्थान में ३५ आता है। । गुरु के आनयन के लिये विचार करते हैं |n ५’ गुरु एक दिन में गुरु की कलादिक गति=४५e'e ', यहां की अवास्तव गति मानते हैं तब वास्तव और अवास्तव गतियों के अन्तर=अवास्तवगुरुगति - ०५१ यह ०५० वास्तवगुरुगति=५’-(४५ee'")=०'० " "e" ५१ १७ ५० + ५० + ५१ इसका स्वरूपान्तर करते हैं ५०'’'५१ = == . A १०००+१७_१०१७:०=के १०१७ १०१७ "+. कलात्मक करने से ०'+ २०४६ १२ =” २० १०१७ १०१७ - १ स्वल्पान्तर से, ७१ ७१X५ ३५५ ६०x१२०० ७२००० ७२७०० -७१ , -.(सृ-ऐ=खें १०१७ ३५४ (ङ) र गुवास्तववाहि अहर्गणसम्बन्धि कलात्मक गुरु (५ प्रहर्गण)-(ही) इससे आचार्योंक्त उपपल हुआ । ५ ). ७१ ५ =वास्तव गुरुगति, यहां प्रथम खण्ड को अंशात्मक करने से ६०- ७१ -(: =)-()प्रांणसम्बन्धि गुरु=(रंग)-()इससे घुमतिभिः कुनगैः’ इत्यादि भास्करोक्त उपपन्न होता है। शुक्रशीत्रोच्चानयनार्थमुपपत्तिः N अवैकदिने शुक्रशीत्रोजगति:="', अत्र स्वल्पान्तरात् १३६७r४४३५ १°४०इति गृह्यते ' तदा १°४०’=अवास्तवशुशीउग । अथ वास्तवावास्तवयुक्ररात्रोच्चगत्यो अथ १४०' रन्तरम्=११४०–(१°३६r७५४४९३५’”)=३५३”११५२५’ ४० =३=डू===। ३५२१५२५“=द्वितीय १+ १ + प्रथमखण्डम् ’ खण्ड, प्रथमखण्ड-' ।३५’=वास्तवशुशीजगति -द्वितीयखण्ड८१°३६७'४४". ।
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