५६ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते
१८४०३२००००-+१२०६६०००+११६६४००००+३८८८०००+३१
=१८७२६४७१७8=आवार्यपठित।Iः एतत्कथनस्येदं तात्रयं ग्रहादिचारसाधनं शक्रदेवाऽर्यभटवटेश्वराचार्यो विहाय सर्वे प्राञ्चोना नवीनाश्चात्रत्याः ( भारतीयाः ) आचार्याः कृतवन्तः । कलि युगदित ३१७४ एतन्मित वर्षान्ते श फाब्दारम्भ इति गणक्रसमाजे जनश्रुट । प्रसिद्धिरस्ति, तेन करुदितः शकान्तं यावत्क्रियन्ति सौरवर्षाणि गतान्येतत्प्रयोजन मत्यावश्यकमतः पूर्वोक्तानां ‘कल्पपराधंमनव इत्यादीनां योगकरणेन पूता अङ्का जायन्त एतदृशेनेत्राहर्गणादीनां साधनं भवत्यत एतत्पाठकरणमतीवावश्यक त्वादच.येण तेऽङ्कापठिना इति । भास्कराचार्येणापि ‘याताः षड् मनवो युगानि भमितानीत्यादिनैतदनुरू-मेन कथ्यते ।। २६.२७ ।। अब कल्पगत कहते हैं । हि. भा.- ब्रह्मा के कल्प के द्वितीयार्ध (पराधं) में छः मनु गत हो गये । वर्तमान मनु के सत्ताइम महायुग बीत गये, अठाइसवें युग के सत्य युगादि तीन युग चरण बत गये शकान्त में कलियुग दि से ३१७४ इतने वर्ष बीत गये, गत छः मनुषों के प्रदि में म€7 में और अन्त में जो मनु सन्धि है उनके सथ, शकान में १६७२& ४७१७६ इतने सौरवर्षे बीत गये, पूर्व कथित गमनु-तमयुगादियों के योग करने से आचार्य पठिताङ्ग आता है। या नहीं इसके लिए गणित दिखलते हैं । = लोकोक्ति के अनुसार ६ मनु+७अनुसन्ध+२७ युग+कृतादि युगचरणत्रय+ ३१७६.८६मनु+७मनुमं+२७यु +(युग--कलि च १ ण)+३१७e =७४७१य्+७४४x४३२०००+२७४४३२०००० +(४३२०००० ४३२०००)+३१७३ =४२६युx २८ ४४३२०००+२७४४३२००००+(४३२०००० ४३२०००)+३ १७e =४२६x४३२००००+१२०६६०००+११६६४०००० +३८८६००० + १७६ = १८४०३२०००० + १२०६६०००+११६६४००००+ ३८६८००० +३१७६ =१९७२e४७१७8=आचःयं पङ्तािक्। यहाँ कहने का अभिप्राय यह है कि आर्यभट और वटेश्वराचार्य को छोड़कर जितने भारतीय ज्योतिषाचर्य हुए हैं उन्होंने प्रहृदि चार साधन शक ही से किये हैं, के लियुगपदि से ३१७४ एग्मितवर्ष न्त में शक वर्षारम्भ हुश्न यह बात भारतीय गणक समज में प्रसिद्ध है, इपलि ! कस्यादि से शक तक जितने सौरवर्ष बीते हैं इख की बहुत आवश्यकता प्रतीत हुई अतः उअर्थ त गतमनु, मनुसन्धि आदि का योग कर आचार्यों ने उपरिलिखित अङ्क पठित