५४ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते दिखलाया जाता है । सितवृत्तीय रविचन्द्रन्तर कर्ण, क्रान्तिवृत्तीय रविचन्द्रान्तर कोटि, चन्द्र शभुज इस त्रिभुज में पूर्वोक्त नियम से सितवृत्तीय रविचन्द्रान्तीश विदित है, और चन्द्रशर भी विदित है तब भुजकोटिज्या और कोटिकोटिज्या के घात त्रिज्या और कर्णकोटिज्या के घात के बराबर होता है इस नियम से सितवृत्तीयान्तर कोटिज्याxत्रि=क्रान्तिवृतीयान्तर कोज्यxशकोज्या. दोनों पक्षों को ( शरकोज्या ) इस से भाग देने से- मितवतीयान्तर ज्या x श्रि =कान्तिवृत्तीयान्तर कोज्या, इसके चाप को नवत्यश में शरकोज्या घटाने से क्रान्तिवृत्तीय रविचन्द्रन्तरांश होंगे, इसके वश से पितरों की उदयकालिक तिथि और अस्तकालिक तिथि साधन करना वह वास्तविक तिथि होगी । इति । अब दिव्य दिन विभगण के बराबर होता है इसकी उपपत्ति दिखलाते हैं। देवों का ऊध्र्व खस्वस्तिक उत्तर धृव है, राक्षसों का ऊध्र्व खस्वस्तिक दक्षिण ध्रुव है। खस्वस्तिक (ध्रुव) से नवत्युश चाप व्यासाघ से ज। वृत्त (नाड़वृत्त ) होता है वही उनका क्षितिज वृत्त है । नीवृत्त से उत्तर (मेषदि से कन्यान्त तक) जब रवि रहते हैं तव देवों का छः महीने का दिन होता है और राक्षसों की छः महीने की रात्रि होती है तथा नाडीवृत्त से दक्षिण (तुलादि से मीनान्त तक) रवि के रहने से देवों के छः महीने की रात्रि होती है। और राक्षसों के छः महीने के दिन होते हैं । (क्षितिज से ऊपर रवि के रहने से दिन और उससे नीचे रहने से २त्रि होती है इस नियम से) इसलिए मेषादि से रवि के बारह राशि भोगकाल (एक र विभगण भोग) याने एक सौरवर्षे देव और राक्षस का अहोरात्र (दिन) सिद्ध हुआ । लेकिन रवि के एक भगण भोगकाल में सम्पात का भी कुछ चलन होगा उसी को अयन गति कहते हैं; इसलिए रवि के एकभगण भोगकाल में देव और राक्षसों के अहोरात्रान्त कादिक अयनगत्युत्पन्न कॉल का संस्कार करने से उन दोनों का वास्तव अहोरात्रमान होता है, यहां आचार्यों ने अयनगति का ग्रहण नहीं किया है इसलिए उतनी छुटि है । भास्कराचार्य भी ‘वेश्वताभोगोऽर्जवर्यं प्रदिष्टम्’ इत्यादि से वही बात कहते हैं इनमें भी वही श्रुटि है । यहां आचार्य ‘दिव्यानि दिनानि ‘रविभगणाः इससे देव-सम्बन्धी दिन के विषय में कहते हैं, राक्षसों की चर्चा नहीं की है, देव और राक्षस का विलोम ( उल्टा ) करके रात्रि और दिन होते हैं लेकिन दिन और रात्रि दोनों की बराबर होती है. इसलिए देव अहोरात्र (दिन) के साथ ही राक्षस अहोरात्र भी दिखला दिये हैं । यदि दिव्य दिन से (राक्षस सम्बन्धी दिन भी) कहा जाय तब तो कोई बात कहने की जरूरत ही नहीं होगी । इति ॥ २५ ॥ इदानीं तत्सर्वस्यैव कोत्पत्तेरारभ्य गतकालस्य शककालस्य ग्रहगणितेऽ हर्गणादयः प्राप्ता इत्येतदाशङ्कच सयुक्तिकं परिहारमाह कल्पपराधे मनवः षटकस्य गतश्चतुर्युगत्रिधनाः। त्रीणि कृतादीनि कलेर्मोऽगैकगुणः ३१७€ शकान्तेऽब्दाः ॥ २६ ॥
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