२६२३ ॥ आझणवग्ग [ १७१ जंतवन जान लेता है, जिसने अपने पोलको उतार झंका, और जो आसक्तिरहित है, उसे मैं माक्षिण कहता हूँ। राजगृह ( शकुंट) खेमा ( भिक्षुणी) ४०३म्मीरपी मैभाविं मगामग्गस कोविदं । उत्तमत्थं अनुप्पत्तं तमहं बूमि ब्राह्मणं ॥२१॥ (गंभीरप्रझ मेधाविनं मार्गामार्गस्य कोविदम्। उत्चमार्थमनुमाप्त' तमहं ब्रवीमि ब्राह्मणम् ॥२२॥ अनुवाद--ज गम्भीर अछावाका, सेंघवी, मार्ग-शाखा, उत्तम पदार्थ (=खस्य)को पाये , उसे मैं प्राह्मण कहता हूँ। ( पोरवासी ) तिस्स (थैर ) १०४-असंसर्प गहवेहि अनागारेहि चूभयं । अनोकसारिं अष्पिच्छं तमहं लूमि ब्राह्मणं ॥२२॥ (असंसृष्ट' णुहल्यै, अनगरौधोभाभ्याम् । अनोकश्चारिणं आल्पेच्छं तमहं ब्रवीमि त्रहणम् ॥२श अनुवाद-घरवालै (=गुहस्य ) और बेघवाले दोनों ही में जो किस नहीं होता, जो विना ठिकानेके घूमता तथा बेचाह है, उसे मैं ब्राह्मण फझता हूँ। बेतवन ( कई भिg ) १०५-निघाय दण्डं भूतेषु तसेसु थावरेसु च । यो न हन्ति न घातेति तमहं बूमि ब्राह्मणं ॥२३॥
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