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२३३३ } लागवग [ ७७७ ( भी ) सुखकर है, अभणभाव ( =म्यास ) छकमें सुखकर है, और प्राक्षणपन (=निष्पाप होना) सुबकर है। ३३३-सुखं याच जारा सलं सुख सजा पतिष्ठिता । मुखो पब्वाय पटिलाभो पाषानं अकरणं सुखं ॥१धा (सुखं यावद् जरां शोचें सुख श्रद्धा प्रतिष्ठिता । सुखः प्रशाथाः प्रतिलाभः पापानां अकरणं सुखम् ॥ १४) अनुवाद---सुदापेतक आचारका पकन करना सुनकर है, और स्थिर अम्ब ( सत्यमें विश्वास ) सुषकर है, शशाका लाभ सुच पर हैं, और पापका न करना सुनकर है। २३नागवर्ग समाप्त