१४६ ॥ धम्मपद [ १३१३ अनुवाद-शबेळा विचारला उत्सुलभ है, ( फितु ) सूड़की मित्रता अच्छी नहीं, आगराज हाथीकी भांति अनासक हो अकेश विवरे और पाप न करे। हिमवत्प्रदेश भार ३३१-अत्यम्हि जातम्हि सुखा सहाया तुट्ठी मुखा या इतरीतने । पुल्लं सुखं जीवितासंङ्खयम्हि सब्बस दुक्खस्स सुखं पहाणें ॥ १३॥ ( अर्थे आते सुखाः सुझाया, तुटिः सुया येतरेतरेण । पुण्यं सुखं जीवितसंक्षये सर्वस्य सुखस्य सुखं प्रहाणम् ॥ १२ ॥ अनुवाद-कुंकूम पडूनैपर मिश्र सुखद (उगते हैं ), परस्पर सन्तोष हो (यह भी ) सुखद ( वस्तु) , जीवनके क्षय होने पर ( किया हुआ) पुष्य सुखद (होता है ) सारे दु-स्रोका विनाभा (=x€थ होना ) ( यह खबसे अधिक ) सुखद है। ३३२-मुखा मत्तेय्यता लोके अयो पैतेय्यता सुखा । सुखा सामर्मता लोके अयो ब्रह्मज्मता सुखा ॥१३ (सुला मानीयता लोकेऽथ पिनीयता सुखा। सुखा श्रमणता लोकेऽथ ब्राह्मणता सुखा ॥ १३॥) अनुषाद--कोकले भाताकी सेवा सुनकर है, और पिता सेवा
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