पा७० ] सुखवग्गो [९३ यह जाययथार्थं निर्वाणको सबसे बड़ा सुख ( कहा बाता है )। ( पसेनदि सखराब ) २० ४-आरोग्यपरमा तामा सन्तु परमं धनं । विस्सासपरमा आती निब्बाणं परमं सुखं ॥८॥ (आरोग्यं परमो लाभा, सन्तुष्टिः परमं धनम् । विश्वासः परमा शातिः, निर्वाणं परमं सुखम् ॥८॥ अनुवदनिरोग होना परम लाभ , सन्तोष परम धन है, विश्वास सबसे बड़ा घन्छ है, निर्वाण परम (=पायसे बडा ) सुना है। , - U वैशी तिस्स (घेर) २०५–पविवेकरसं ( पीत्वा रसं उपममस्स च । ८ निद्रो होति निष्पापो धम्मपीतिरसं पिव ॥६॥
- (प्रविवेकरसं पीत्वा रसं उपशमस्य च।
निर्वैरो भवति निष्पापो धर्म प्रतिरसं पिवन् ।॥ ) अनुवाद-एकान्त ( चिन्सन )के रस, तथा ढपशस (=शान्ति )के रसको पीकर ( पुरुष ), निडर होता है, (और ) धर्मेका प्रेमरस पानकर निक्षपाप होता है । वैज्ञवमाम ( वेणुग्राम, वैशीलीके पास ) सफ (देवराज ) २०६-साधु दस्सनमरियानं सन्निवासो सदा सुखो । अवसनेन बालानं निश्चमेव मुखी सिया ॥१०॥