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पृष्ठम्:धम्मपद (पाली-संस्कृतम्-हिन्दी).djvu/१३

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२ ] धम्मपदं [ १३ वाहन ( यैछ घोड़े ) के पैरोओं जैसे ( रथका) पहिया अनुगमन करता है (बैसेही) उसकाकुत्र अनुगमन करता है। आवन्ती २-मनो पुब्बझमा धम्मा मनोसेना मनोमया । मनसा चै पसन्नेन भातीति वा 'करोति वा । ततो 'नं सुखमन्वेति वाया' व अनपायिनी ॥२॥ (मनपूर्वङ्गमा धर्मा मनश्श्रेष्ठ मनोमयाः । मनसा चेत् प्रसन्नेन भाषते वा करोति वा । तत एनं सुखमन्वेति छायेवानपयिनी ॥॥ अनुवाद—सभी धर्मो मन अग्रगामी है, सन प्रधान है (कर्म) अनसय हैं। यदि (कोई ) स्वच्छ अनसै बोलता था करता है, तो ( कभी ) न (साथ ) छोडनेवाली छायाकी तरह सुख उखका अनुगमन करता है । | आवर्ती ( बेतघन ) सुखलिस् (धेर ) ३-पैच्छेि में अबधि मं अजिनि में आहासि मे। ये च तं उपनय्हन्ति वैरं तेनं न सम्मति ॥३॥ ( अक्रोशीव मां अबधीत मां अजैषीद म आश्चर्य मे। ये च तत् उपनह्यन्ति तेष वैरं न शाम्यति यश। ) अनुवाद--मुझे गा दिया', 'खुले मा', 'झुसे हरा दिया', 'धु कटक्रिया' ( पुंखा ) जो ( सन} ) बाँधते हैं, जबका वैर कभी शान्त नहीं होता।