१५९४ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते काले मिश्रस्य रात्र्यर्धकालस्य स्वेष्टकालस्य च यदन्तरं तेन भुक्तिजं हगतिगुणा फलं षष्टधा विभज्य लब्धं निशीथकालिकग्रहाद्विशोध्य शेषं तात्कालिको ग्रहो भवति । एवं निशीथानन्तरेष्टकाले लब्धं निशीथकालिकग्रहे संयोज्य तात्कालिक ग्रहः कार्यं इत्यनुक्तमपि बुद्धिमता ज्ञायत इति । अत्रोपपत्तिस्त्रैराशिकेन स्फुटा ॥६६॥ हि - भा.-दिन में या राज्यघं से पूर्व इष्टकाल हो तो मिश्रकालइष्टकाल के अंतर को ग्रहगति से गुणा करें, गुणनफल में साठ (६०) से भाग देने पर फल जो हो उसको निशीथ (राभ्यधं) कालिक ग्रह में घटा देने से शेष तात्कालिक (इष्टकलिक) ग्रह होता है । इस तरह रात्र्यर्ध के बाद इष्टकाल हो तो मिश्रकाल भर इष्टकाल के अन्तर को ग्रहगति से गुणाकर ६० से भाग दें, लब्ध फल को रायर्घकालिक ग्रह में जोड़ देने से इष्टकालिक ग्रह होता है । उपपत्ति । यहां इसकी उपपत्ति गैराशिक गणित से स्पष्ट ही है। विज्ञजन के लिये इससे अधिक स्पष्ट क्या हो सकता है । न्ययुतिवियोगादक्षपदेः शोधिते दिनदले भ। भाभे तिकृत्योः कृतमनुयुतोनयाकृत्वकर्षः स्यात् ॥ ६७ ॥ सु. भा–कान्यक्षयोर्युतिवियोगात् त्रिप्रश्नोक्त्या मध्यनतांशाः साध्याः । नतांशमाने चक्रपदान्लवतेः शोधिते शकुचापमाने विदिते सति त्रिप्रश्नाधिकार विधिना शङ्कुना मध्यनताशज्या तदा द्वादशांगुल शंकुना किमित्यनुपातेन दिनदले मध्याह्न भा छाया साध्या । छायाकर्ण कृत्योः कृतमनुयुतनयोः सत्योयारकस्या- परस्य कृतिः क्रमेण भवति । छायाकृतिः कृतमनु १४४ युता . छायाकर्णकृतिस्तथा छायाकर्णाकृतिः कृतमनु १४४ भिरूना छायाकृतिर्भवतीत्यर्थः। त्रिप्रश्नाधिकारविधिना स्फुटा ॥६७ हि. भा.- क्रान्ति और अक्षांश का योग या अन्तर मध्य नतांश होता है । नतांश मान को चक्रपद (e०) में घटाने से ६०–नतांश=उन्नतांश होता है । इस पर से यकृमान जानकर त्रिप्रश्नाधिकारोक्त प्रकार से अनुपात द्वारा दिनार्ध में छाया साधन करना चाहिये १ क्रान्त्यक्षयुतिवियोगाच्चक्रपदात् शोधिते दिनदले भा। भाषा तिकृत्योः कृतमनुयुजेनयोः कृतिरकर्षस्य ॥६७
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