१५९० ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते स्यात् । एवं यदि मन्दस्पष्टगतेः शीघ्रगतिफलमृणं बहु स्यात् तदा ऋणमाने भुक्त्य्परहिते मन्दस्पष्टगतिरहिते सति शेषं तत्काले वक्रां भुक्ति कारयेद्गण क इति शेषः । अत्रोपपत्तिः । यदि चत्वारिंशन्मितेन भागात्मकेन त्रिगुणशेषेण गतैष्यपिण्डयोरुन्तरं लभ्यते तदा त्रिगुणकेन्द्रगतिभाग समशेषेण किं पिण्डस्य नवगुणत्वात् फलं नवहृत मद्यतनश्वस्तन शीघ्रफलयोरन्तरं भागात्मकं तत् षष्टिगुणं जातं कलात्मक शीघ्र गतिफलम् (गपि-एपि) जशीकेग (गपिqएपि) शीकेग ४६०: ४०४६६० १२ त्रयोदशचतुर्दशपिण्डयोरन्तरे केन्द्रांशाः= इति पूर्वं ४२ सूत्रे प्रतिपादि तम् । तत्र गतैष्यपिण्डान्तरं चतुर्दशपिण्डाभावात् त्रयोदशपिण्ड सममतः शीघ्रफल गति साधने तत्र केन्द्रगतेस्त्रयोदशपिण्डो गुणः षष्टिर्हो भवेत् अनर्णवासना चाति सुगमा ।।५८-६०॥ अब ग्रह के शी व्रगति फल को कहते हैं । हि- भा.- मन्दस्फुटगति से ऊन शीघ्रोच्चगति शीघ्रकेन्द्र गति होती है। शीघ्रकेन्द्र गति को शीघ्रखण्ड (अर्थात् गत-एष्य पिण्ड का अन्तर) से गुणा हैं और खर्क (१२०) से भाग हैं लब्धि कलादि होगी, वही शीघ्रफल होगा । उस शीघ्रफल को क्रम और उत्क्रम विधि में धन और ऋण करें। जैसे जहां पर गतपिण्ड से एष्यपिण्ड अधिक हो वहां फल को धन करें। जहां पर गतपिण्ड से एष्यपिण्ड अल्प हो वहां ऋण करवं । जहां चतुर्दश (१४) पिण्डएष्य हो वहां शीघ्रकेन्द्रगति का गुणक विश्व (१३) पिण्ड होता है और भाग हर षष्टि (६०) होता है। शीघ्रकेन्द्रगति को त्रयोदश (१३) पिण्ड से गुणाकर साठ से भाग दें फल शीघ्रगतिफल होगा, मन्दस्फुटगति + शीगफ= स्फुटगति । यदि मन्दस्पष्टगति से ऋणशीव्रगतिकूल अधिक हो तो शेष को वक्रगति करना चाहिये । उपपत्ति । अन्तर = त्रिगुणशेष भागात्मक चत्वारिंशत् (४०) में गत एष्यपिण्ड का अंतर मिलता है तो त्रिगुणित केन्द्रगति समशेष में क्या इस अनुपात से भागात्मक अद्यतन श्वस्तन शीघ्रफल का (गपिएपि) ३ शीठेग । इसको साठ से गुणने पर कलात्मक शीघ्रगतिफल ४०X३४६० (गपि ० एपि) १ शीकेग १२. तेरह-चौदह पिण्डों के अन्तर में केन्द्रांश= ३ * । पहले ४२ सूत्र में कहा गया है।
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