१४०८ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते प्रकंग्रहणमुपलक्षणार्थम् । शेषं स्पष्टार्थम् । ‘दृष्टिमण्डलभवा लवाः कुजा’-इत्यादिभास्करोक्तमे तदनुरूपं विचिन्त्यम् ।।६३।। वि. भा.-दृग्वृत्ते यो हि नतांशस्तज्ज्या दृग्ज्या कथ्यते, उन्नतांशचापस्य ज्या शङ्कुः। दिवाशङ्कुमूलं रवेरुदयास्तसूत्राद्दक्षिणेन भवति । अत्रार्कग्रहण मुपलक्षणार्थम् । रव्युपरि हवृत्ते निवेशिते दृग्वृत्तक्षितिजवृत्तयोः सम्पातद्वयगतं सूत्रं दृक्कुज सूत्रम् । रवि विम्बकेन्द्रादूर्वाधर सूत्रोपरि लम्बरेख दृग्ज्या । रवि बिम्बकेन्द्रादेव दृक्कुज सूत्रोपरिलम्बरेखा शङ्कुः । शङ्कुमूलाद् भूकेन्द्रपर्यन् दृक्कुजसूत्रखण्डं तथा नतांशज्यामूलाद् भूकेन्द्रपर्यन्तमूर्वाधरसूत्रखण्डं भुजचतुष्टयैरेकं चतुभुजं जातम् । अत्र शङ्कूध्र्वाधररेखयोः समानान्तरत्वात् नतांशज्या-दृक्कुजसूत्र खण्डं च समानान्तरमत इत्यायतं चतुभुजस् । तेन दृक्कु जसूत्रखण्डं दृग्ज्यासंज्ञकं रविबिम्बकेन्द्रादूर्वाधरसूत्रोपरिलम्बेन नतशज्या प्रमाणेन समानम् । तथैव शङकुरेखा नतांशज्यामूलाद् भूकेन्द्रपर्यन्तं-ऊध्र्वाधर सूत्र खण्डेन समानेति । अत्र लल्लोक्तम्- "अम्बरमध्यांशुमतोर्मध्यांशज्या भवेन्नत ज्या रवे । शङ्कमूलाद्दिङ्मध्यगामिनी भूतले दृग्ज्या।” इति लवाः कुजादुन्नता गगनमध्यतो नताः" इत्यादि भास्करोक्त च सदृश मेवेति ॥६३॥ tl अब प्रकारान्तर से उन दोनों (दृग्ज्या और शङ्कु) की संस्थिति और शङकुंतल को कहते हैं। . हि. भा.-दृग्वृत में जो नतांश चाप है उसकी ज्या दृग्ज्या कहलाती है । तथा उन्नतांश चाप की ज्या शङ,कु कहलाती है । दिवाशङकुसूल रवि के उदयास्त सूत्र से दक्षिण होता है । यहां रविग्रहण उपलक्षण के लिये है। रविबिम्ब केन्द्र के ऊपर दृवृत्त करने से हुवृत्त और क्षितिज वृत्त के दो स्थानों में जो योग है तद्गत् सूत्र दृञ्ज सूत्र है। रवि बिम्बफेन्द्र से ऊध्र्वाधर सूत्र के ऊपर लम्बरेखा दृग्ज्या है रवि बिम्ब केन्द्र ही से दृञ्ज सूत्र के ऊपर लम्ब रेखा शङ्कु । शङ्कुसूल से भूकेन्द्रपर्यन्त दृक्कंज सूत्रखण्ड तथा नतांशष्या मूल से भूकेन्द्रपर्यन्त ऊध्र्वाधर सूत्रखण्ड इन चारों भुजों से एक चतुर्भुज उपपन्न हुआ । यहां शङ्कु और ऊध्र्वाधर सूत्र के समानान्तर होने के कारण नतांशज्या और दृक्कुज सूत्रखण्ड समानान्तर हुआ अतयह आयत चतुभुज है । इसलिये दृक्कुज सूत्र खण्ड हर्ज्या संज्ञक रवि बिम्ब केन्द्र से ऊध्र्वावर सूत्र के ऊपर लम्बनतांशज्या के बराबर हुआ । उसी तरह शङ्कुसूत्र और नतांशज्यापूल से भूकेन्द्रपर्यन्त ऊध्र्वाधर सूत्र खण्ड के बराबर हुआ। यहां “अम्बरमध्यांशुमतोः’ इत्यादि लल्लोक्त तथा ‘दृष्टिमण्डलभवा लवाःइत्यादि भास्करोक्त समान ही है इति H६३
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