पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/२९५

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१३८६ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते अब राहुकृत ग्रहण नहीं होता है वराहमिहिरादियों के मत को कहते हैं । हिभायदि राहु पूर्वदिशा से चन्द्र को आच्छादित (ढकता) करता है अर्थात यदि चन्द्र ग्रहण में पूर्व से स्पर्श होता है, तो उसी तरह सूर्य को क्यों नहीं आच्छादित करता है अर्थात् सूयं ग्रहण में भी पूर्व ही है वयों स्पर्श नहीं होता है, चन्द्रग्रहण में स्थित्यर्ध बड़ा होता है वैसे ही सूर्यग्रहण में क्यों नहीं होता है । क्या प्रत्येक देश में सूर्य और राहु भिन्न होते हैं, क्यों कि सूर्य ग्रहण में ग्रास में भिन्नता होती है । इसलिये राहुकृत सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण नहीं होता है ये बातें वराहमिहिरश्रीषेण-आर्यभट-विष्णुचन्द्र आदि आचार्यों ने लोकविरुद्ध और वेद स्मृति संहिता से वहितुं त कही हैं यदि राहुकृत सूर्य ग्रहण और चन्द्रग्रहण होता हैं तो चन्द्र के पूर्व तरफ स्पर्श और सूर्य के पश्चिम तरफ स्पर्श क्यों होता है क्योंकि राहु एक ही है । चन्द्र ग्रहण में पश्चिम में मोक्ष होता है, सूर्यग्रहण में पूर्वं तरफ से क्यों ? दोनों ग्रहणों में स्पषं मोक्ष आदि का दर्शन समान रूप से होना चाहिये, सो नहीं होता है, अर्घ खण्डित रविबिम्व के झुङ्गद्य की तीक्ष्णता और स्थिति लघु, रवि ग्रहण कहीं दृश्य होता है कहीं नहीं इत्यादि उपपन्न नहीं होता है यहां वराह मिहिरोक्त वचन ‘आवर्गं महदिन्दोः कुण्ठविषाणःइत्यादि विज्ञान भाष्य में लिखित है । "प्रथमं रवि मण्डलं ततो न ततः खण्डितमिन्दुमण्डलस’ इत्यादि विज्ञान भाष्य में लिखित श्लोकों से राहुकृत ग्रहण का खण्डन लल्लाचार्यों ने किया है । सिद्धान्तशेखर में ‘राहुणा यदि पिधीयते प्रहः इत्यादि से श्रीपति ने भी राहुकृत ग्रहण का खण्डन किया है इति ॥३७-३e इदानीं संहितामतमवलम्ब्य वराहादीन् निराकरोति । यद्य वं ग्रहणफलं गर्गाद्याः संहितासु यदभिहितम् । तवभवे होमजपस्नानादीनां फलाभावः ।।४०।। सु. भा--गर्गाचे राहुवशतः संहितासु यद्ग्रहणफलमभिहितं तदं व्यर्थमेव। यद्येवमेव वराहमिहिरादीनां मतमिति । तदभावे राहुकृतग्रहणाभावे । शेषं स्पष्टार्थम् ।।४०। वि. -वराहमिहिरादीनां मतं संहितासु राहुवशतो यद्ग्रहण भा.-यद्येवं फलं कथितं तदुव्यर्थमेव भवेत् । तदभावे (हुकृत ग्रहणाभावे) .होमजपस्नाना दीनामपि फलाभावो भवेदिति ॥४०॥ अब संहितामत क अवलम्बन कर वराहमिहिरादि मत का खण्डन करते हैं । हि. भा--यदि वराहमिहिर आदि आचाय के इस तरह मत हैं तब संहिताओं में राहुवश से जो ग्रहण फल कहा गया. है वह व्यर्थ है । राहुकृत ग्रहण के अभाव (राहु के द्वारा ग्रहण नहीं होने) में होम जप स्नान आदि का भी फलाभाव होता है इति ॥४०॥