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पृष्ठम्:वैशेषिकदर्शनम्.djvu/१५७

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अ. १ आ. १ सू. ८

शास्त्रार्थ संग्रहः ।

१-हमारे मारे कार्य प्रतीति औरं व्यवहार मे चलतें हैं । प्रतीति स्वय जानने, और व्यवहर दूसरे को बतलाने का नाम है ।

२-मतीति से जो सिद्ध हो, उसे पदार्थ कहते हैं। पदार्थ अर्थात पद का अर्थ, क्योंकि जो कुछ भी प्रतीत होता है , उस के वतलाने में अवश्य कोई पद वोला जाता है, अतः पद का अर्थ होने से पदार्थ कहलाता है ।

१-पदार्थ छ: -द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य और िवशेष । ४-इन में से द्रव्य धर्मी है । गुण और कर्म उम के धर्म हैं। सामान्य और विशेष द्रव्य गुण कर्म तीनों के धर्म हैं सम वाय पांचों का धर्म है ।

५-द्रव्य नौ हैं-पृथिवी, जल, तेज. वांयु, आकाश, काल दिशा, आत्मा और मन ।

--(१) पृथिवी=मट्टी। यह स्थूल भूमि, ईट पत्थर, वृक्ष. प्राणधारियों के शरीर सव पृथिवी हैं । (२) जल=पानी (३) तेज, जिस का धर्म गर्मी है-आग्रे तेज है, और जिस किसी द्रव्य में गर्मी है, वह सब उस में स्थित तेज की है । (४) वायु प्रसिद्ध वायु (५ ) आकाशा, जिस का गुण शब्द है ( ३. ७ ) काल और दिशा जो प्रसिद्ध हैं (८) आत्मा, शीरो के भीतर जौ जानने वाला है (९) मन, उस आत्मा के पास जो जानने का साधन है । इन में पृथिवी संव से स्थूल है, उम से मूक्ष्म जल, उस से सूक्ष्म तेज, उस से सूक्ष्म वायु । ये पृथिवी'जल तर्ज-ायु जो हमारे'इन्द्रियों का विषय हैं, ये सावयव है, अंत