अ०९ आ०१ ऋ० ४
सव उत्पत्ति में पहले असत् होता है, क्योंकि जो सत है, उस का क्रिया और गुण से व्यवहार होता है। पर घड़ा चलता है, घड़ा लाल है,' उत्पत्ति से पूर्व यह व्यवहार नहीं होता, इस लिए उस समय उस का अभाव है। यह जो उत्पत्ति से पहले अभाव है, यह भागभाव कहलाता है ।
सदसत् ॥ २ ॥
विद्यमान हुआ, अमत् हो जाता है ।
• • • व्या—और यह भी प्रत्यक्षसिद्ध है, कि विद्यमान भी घड़ा आदि मुद्भर के महार आदि से असत् हो जाता है। इस अभाव का नाम ध्वंसाभाव है ।
सं—जो यह मानते हैं, कि नाश घड़े की एक अवस्था विशेष है, धड़ से भिन्न अभाव विशेष नहीं, उन को उत्तर देते है
असतः क्रियागुण व्यपदेशाभावा दर्थान्त रम् ॥ ३ ॥
जो नहीं है, उसी के क्रिया गुण का व्यवहार नहीं होता , इस कारण यह (नाश भी ) एक अलग पदार्थ है ।
सै-तीसरा अन्योऽन्या भाव यतलाते है
सत भी आमत होता है
व्या-‘घड़ा वस्त्र नहीं है, इस भतीति में घड़ा अपने रूप से स भतीत होता है, और वस्त्वन्तर के रुप से असह भासता है, इस प्रतीतिसिद्ध अभाव का नाम अन्योऽन्याभाव वा