से छूटा हुआ वाण जक् चलता है, तो गिरने-तक पद २ पर उस को नए २ स्थान का संयोग होता जाता है। इस प्रकार.गिरने तक कई संयोग हो जाते हैं, डरएक संयोग से पूर्वेला कर्मनाश हो जाता है. इस से सिद्ध है, कि गिरने तक-एक कर्म नही, कई कर्म हुए हैं। वे इस प्रकार कि
नोदनादाद्यमिषोः कर्म तत्कर्मकारिताच संस्का रादुत्तरंतथोत्तरमुत्तरं च ॥ १७ ॥
नोदन से वाण का प्रथम कर्म होता है. उम कर्म से उत्पन्न । किये गए संस्कार ( वेग,) से अगला (कर्म होता है) वैसे अगला २ होता जाता है ।
सस्काराभावेंगुरुत्वात् पतनम् ॥ १८ ॥
संस्कार के अभाव-में (अर्थात् संस्कार मन्द २ होता हुआ जनव-क्षीण:हो.ज़ाता है, तव) गुरुत्व मे पतन होता है। पञ्चम अध्याय-द्वितीय आह्निकः ।
स-नोदनादि के अधीन कम की परीक्षा आरम्भ करते हैं
नोदनाभिघातात् संयुक्त संयो च पृथिव्यां कर्म १
नोदन से, अभिघात से और संयुक्त संयोग से पृथिवी में कर्म होता है ।
व्या-धकेलने वाले संयोग को नोदन कहते है। यदि वह चौट दे, तो 'उस ‘को आभिघात कहते हैं। दोनों प्रकार-के संयोग से.पृथिवी में कर्म होता है। जैसवाण में नोदन से कर्म होता है । और गोले-कें लगने से जो वस्तु उड जाती है, उस में