वैशेषिक दर्शन ।
सगति-इस प्रकार त्रिकोटिक संशय उठाकर द्रव्य कीटि के खण्डन के लिए कहते हैं
एकद्रव्यत्वान्न द्रव्यम् ॥ २३ ॥
एक समवायि वाला, होने से द्रव्य नहीं है ।
व्या-कार्य द्रव्य कोई भी ऐमा नहीं हो सकता, जिस का ममवायि कारण एक ही द्रव्य ( अत्रयव ) हो, पर शब्द का ममवायि एक ही द्रव्य है (२ । १ । ३०) इस लिए द्रव्य से विरुद्ध धर्म वाला होने से शाब्द द्रव्य नहीं है । सगति-अस्तु, कर्म एक द्रव्य के आभित होता है, इस लिए { शब्द कर्म हो सकता है, इस पर कहते हैं
नापि कर्म चाक्षुषत्वात् ॥ २४ ॥
' कर्म भी नही. क्योंकि अचाक्षुष है।
व्या-याद शब्द कम हाता, त। चक्षुग्राह्य हाता, क्याक प्रत्यक्ष कर्म सब चक्षुग्रीह्या होते हैं, और शब्द है तो प्रत्यक्ष, पर चक्षुग्रहा नही, इस से स्पष्ट है, कि कर्म की जाति का नहीं ।
गुणस्य सतोऽपवर्गः कर्मभिः साधभ्र्यम्।२५ )
गुण होते हुए का झट नाश जो है, यह कर्मो के साथ ६ १० व्या-जव'कर्म आशुविनाशी हैं, और शब्द भी आशुवि 'नाशौ है, ता फिर इम को कर्म क्यों न माना जाय, इस आशंका का'य उत्तर दिया है. कि यह नियम न, कि कर्म ही आशु विनाशी है. द्वित्वादि संख्या, ज्ञान. सुख. दुःख आर्द गुण भी तो आशु विनाशी हैं, इस लिए शब्द ' जव पारशेष से-शुण