"ऋग्वेदः सूक्तं ४.१५" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पङ्क्तिः १: | पङ्क्तिः १: | ||
अग्निर होता नो अध्वरे वाजी सन परि णीयते | |
अग्निर होता नो अध्वरे वाजी सन परि णीयते | |
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देवो देवेषु यज्ञियः |
देवो देवेषु यज्ञियः ॥ |
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परि तरिविष्ट्य अध्वरं यात्य अग्नी रथीर इव | |
परि तरिविष्ट्य अध्वरं यात्य अग्नी रथीर इव | |
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आ देवेषु परयो दधत |
आ देवेषु परयो दधत ॥ |
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परि वाजपतिः कविर अग्निर हव्यान्य अक्रमीत | |
परि वाजपतिः कविर अग्निर हव्यान्य अक्रमीत | |
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दधद रत्नानि दाशुषे |
दधद रत्नानि दाशुषे ॥ |
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अयं यः सर्ञ्जये पुरो दैववाते समिध्यते | |
अयं यः सर्ञ्जये पुरो दैववाते समिध्यते | |
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दयुमां अमित्रदम्भनः |
दयुमां अमित्रदम्भनः ॥ |
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अस्य घा वीर ईवतो ऽगनेर ईशीत मर्त्यः | |
अस्य घा वीर ईवतो ऽगनेर ईशीत मर्त्यः | |
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तिग्मजम्भस्य मीळ्हुषः |
तिग्मजम्भस्य मीळ्हुषः ॥ |
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तम अर्वन्तं न सानसिम अरुषं न दिवः शिशुम | |
तम अर्वन्तं न सानसिम अरुषं न दिवः शिशुम | |
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मर्म्र्ज्यन्ते दिवे-दिवे |
मर्म्र्ज्यन्ते दिवे-दिवे ॥ |
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बोधद यन मा हरिभ्यां कुमारः साहदेव्यः | |
बोधद यन मा हरिभ्यां कुमारः साहदेव्यः | |
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अछा न हूत उद अरम |
अछा न हूत उद अरम ॥ |
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उत तया यजता हरी कुमारात साहदेव्यात | |
उत तया यजता हरी कुमारात साहदेव्यात | |
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परयता सद्य आ ददे |
परयता सद्य आ ददे ॥ |
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एष वां देवाव अश्विना कुमारः साहदेव्यः | |
एष वां देवाव अश्विना कुमारः साहदेव्यः | |
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दीर्घायुर अस्तु सोमकः |
दीर्घायुर अस्तु सोमकः ॥ |
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तं युवं देवाव अश्विना कुमारं साहदेव्यम | |
तं युवं देवाव अश्विना कुमारं साहदेव्यम | |
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दीर्घायुषं कर्णोतन |
दीर्घायुषं कर्णोतन ॥ |
१९:५९, २३ जनवरी २००६ इत्यस्य संस्करणं
अग्निर होता नो अध्वरे वाजी सन परि णीयते | देवो देवेषु यज्ञियः ॥ परि तरिविष्ट्य अध्वरं यात्य अग्नी रथीर इव | आ देवेषु परयो दधत ॥ परि वाजपतिः कविर अग्निर हव्यान्य अक्रमीत | दधद रत्नानि दाशुषे ॥ अयं यः सर्ञ्जये पुरो दैववाते समिध्यते | दयुमां अमित्रदम्भनः ॥ अस्य घा वीर ईवतो ऽगनेर ईशीत मर्त्यः | तिग्मजम्भस्य मीळ्हुषः ॥
तम अर्वन्तं न सानसिम अरुषं न दिवः शिशुम | मर्म्र्ज्यन्ते दिवे-दिवे ॥ बोधद यन मा हरिभ्यां कुमारः साहदेव्यः | अछा न हूत उद अरम ॥ उत तया यजता हरी कुमारात साहदेव्यात | परयता सद्य आ ददे ॥ एष वां देवाव अश्विना कुमारः साहदेव्यः | दीर्घायुर अस्तु सोमकः ॥ तं युवं देवाव अश्विना कुमारं साहदेव्यम | दीर्घायुषं कर्णोतन ॥