"ऋग्वेदः सूक्तं ४.९" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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अग्ने मर्ळ महां असि य ईम आ देवयुं जनम | |
अग्ने मर्ळ महां असि य ईम आ देवयुं जनम | |
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इयेथ बर्हिर आसदम |
इयेथ बर्हिर आसदम ॥ |
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स मानुषीषु दूळभो विक्षु परावीर अमर्त्यः | |
स मानुषीषु दूळभो विक्षु परावीर अमर्त्यः | |
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दूतो विश्वेषाम भुवत |
दूतो विश्वेषाम भुवत ॥ |
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स सद्म परि णीयते होता मन्द्रो दिविष्टिषु | |
स सद्म परि णीयते होता मन्द्रो दिविष्टिषु | |
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उत पोता नि षीदति |
उत पोता नि षीदति ॥ |
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उत गना अग्निर अध्वर उतो गर्हपतिर दमे | |
उत गना अग्निर अध्वर उतो गर्हपतिर दमे | |
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उत बरह्मा नि षीदति |
उत बरह्मा नि षीदति ॥ |
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वेषि हय अध्वरीयताम उपवक्ता जनानाम | |
वेषि हय अध्वरीयताम उपवक्ता जनानाम | |
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हव्या च मानुषाणाम |
हव्या च मानुषाणाम ॥ |
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वेषीद व अस्य दूत्यं यस्य जुजोषो अध्वरम | |
वेषीद व अस्य दूत्यं यस्य जुजोषो अध्वरम | |
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हव्यम मर्तस्य वोळ्हवे |
हव्यम मर्तस्य वोळ्हवे ॥ |
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अस्माकं जोष्य अध्वरम अस्माकं यज्ञम अङगिरः | |
अस्माकं जोष्य अध्वरम अस्माकं यज्ञम अङगिरः | |
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अस्माकं शर्णुधी हवम |
अस्माकं शर्णुधी हवम ॥ |
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परि ते दूळभो रथो ऽसमां अश्नोतु विश्वतः | |
परि ते दूळभो रथो ऽसमां अश्नोतु विश्वतः | |
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येन रक्षसि दाशुषः |
येन रक्षसि दाशुषः ॥ |
१९:५९, २३ जनवरी २००६ इत्यस्य संस्करणं
अग्ने मर्ळ महां असि य ईम आ देवयुं जनम | इयेथ बर्हिर आसदम ॥ स मानुषीषु दूळभो विक्षु परावीर अमर्त्यः | दूतो विश्वेषाम भुवत ॥ स सद्म परि णीयते होता मन्द्रो दिविष्टिषु | उत पोता नि षीदति ॥ उत गना अग्निर अध्वर उतो गर्हपतिर दमे | उत बरह्मा नि षीदति ॥
वेषि हय अध्वरीयताम उपवक्ता जनानाम | हव्या च मानुषाणाम ॥ वेषीद व अस्य दूत्यं यस्य जुजोषो अध्वरम | हव्यम मर्तस्य वोळ्हवे ॥ अस्माकं जोष्य अध्वरम अस्माकं यज्ञम अङगिरः | अस्माकं शर्णुधी हवम ॥ परि ते दूळभो रथो ऽसमां अश्नोतु विश्वतः | येन रक्षसि दाशुषः ॥