सिद्धिलक्ष्मीयुक्ताक्षरमालामन्त्रः

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श्रीगणेशाय नमः ॥
ओं नमः श्रीसिद्धिलक्ष्मी देव्यै ॥
ओं ह्री& ह्र& हा& प्रे& क्षो& क्रो& नमः ॥
ओं ह्री& ह्र& हा& फ्रे& क्षो& क्रो& नमः ॥
ओं ह्री& ह्र& हा& फ्रे& ओं क्रो& नमः ॥
ओं तत्सत् ॥ ओं तत्सत् ॥ ओं तत्सत् ॥
ओं अस्य श्रीसिद्धिलक्ष्म्या युताक्षरमालामंत्रस्य भरद्वाज ऋषिः म्मध्या
प्रतिष्ठा सुप्रतिष्ठा गायत्र्युव्लिगनुष्टुव्वृहती पंक्तितृष्टुप्जगत्पंति जगती
शर्कर्यतिशर्करी प्रकृत्पुत्कृतयश्छन्दांसि ॥
सिद्धिर्लक्ष्मीर्देवता फ्रे& वीजं ॥
ख्फ्रे& शक्तिः क्रो& कीलकं भुक्तिमुक्तिसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगे ॥

२अ) ऐ& ओं ह्री& ह्र& फ्रे& भगवतिचण्डकापालिनि सिद्धिलक्ष्मिप्रत्यङ्गिरे क्षो& क्रो&
श्री& स्त्री& रक्तमुखिघोराट्टहासिनि भीमनादिनि प्रणतार्तिहारिणि ॥
आ& क्री& हो& क्षो& ग्लो& श्मशानवासिनि हिमकिरणशुभ्रशरीरे ॥
भक्तजनतारिणि फ्रे& ख्फ्रे& ह्स्फ्रे& ह्स्ख्फ्रे& ह्सौ&
परमसदाशिवसामरस्यचारिणि कात्यायणि कापालिनि महायोगिनि
कुन्दचन्द्राधिकधवले महाभद्ररूपशवाधिरूढे ॥
क्रौ& ओं ग्लु& ग्लौ& व्लू& सकलसुरासुरनरकिन्नर मनोऽनुरञ्जिनि ॥

२ब्) दैत्यदानवदर्पभञ्जिनि ॥
पञ्चवक्त्रधारिणि ॥
नरमुण्डमाला हारिणि ॥
चतुर्वर्गफलदायिनि ॥
चर्चरीकरतालिकागायिनि ॥
ह्रा& ह्री& ह्रू& ह्र& ह्रौ& चण्डचण्डतितरमहाविकटगोररावे ॥
त्रिविधमहातत्वविद्या प्रकाशिनि ॥
चतुर्दशभुवनसन्त्रासकार महाहासिनि ॥
त्री& थ्री& द्री& ध्री& न्री& त्रैलोक्याभयशौण्डभुजदण्डदशकमण्डिते ॥
परमैश्वर्यकरणभूते भूतेश्वरवामलोचने लोचनत्रयं विराजिते ॥
फे& फ्रे& ख्फ्रे& ह्स्फ्रे& ह्स्ख्फ्रे& हिमकुन्दधवलकलेवरेऽपि
महानीलनीरदपभे प्रत्यङ्गिरा शक्तितत्वावतारे ॥

३अ) प्रचण्डचण्डिनिमहाभयानके ॥
प्रलम्वलम्विनिचर्चरी करतालिका समयसन्त्रासितत्रिभुवने ॥
ननाजन्मोपचितपापसञ्चयकारण महानरकार्णववारिणि ॥
ह्री& हू& फ्रे& ओं क्रो& राज्यलक्ष्मि विजयलक्ष्मि जय जय जीव जीव कह कह
स्फुरसकलशत्रुप्रमर्दिनि महामाये ॥
ह्री& हू& फ्रे& फट् कोटिव्रह्माण्डकवलिनि महारावे ॥

३ब्) ह्री& हू& फ्रे& फट् परमशिवसामरस्यमयि महाभीमे ॥
ह्री& हू& फ्रे& फट् महाश्मशानसञ्चारिणि महाभागे ॥
ह्री& हू& फ्रे& फट् महादारिद्र्यदुःखदलिनि महाहासे ॥
ह्री& हू& फ्रे& फट् कैवल्यरूप स्वपदप्रकाशिनि महाघोरे ॥
ह्री& हू& फ्रे& फट् चतुर्वर्गफलदायिनि महाचण्डे ॥
ह्री& हू& फ्रे& फट् महाजटाभारभासुरे महाग्रासे ॥
ह्री& हू& फ्रे& फट् सकलकुलाकुलचक्रनायिके महादये ॥

४अ) ह्री& हू& फ्रे& फट् शुद्धसत्वगुणमयशरीरे महाविद्ये ॥
ह्री& हू& फ्रे& फट् संसारवंधविमोचनि कलातीते ॥
ह्री& हू& फ्रे& फट् पञ्चकालानलकृतावासे महाप्रकाशे ॥
ह्री& हू& फ्रे& फट् महादोर्दण्डमण्डलमण्डिते रुद्रावासे ॥
ह्री& हू& फ्रे& फट् चतुर्दशभुवनत्राणप्रदे महावले ॥
ह्री& हू& फ्रे& फट् ज्वलदग्निमुखघोराकारे महाव्रते ॥
ह्री& हू& फ्रे& फट् दितिजदनुजप्रमर्दिनि महाकल्पे ॥
ह्री& हू& फ्रे& फट् सत्ययुगप्रकटितप्रभावे महानर्तकि ॥

४ब्) ह्री& हू& फ्रे& फट् भद्रपर्यङ्कशयिनिसमरविजयिनि परव्रह्मलयिनि ॥
ओं क्षो& क्रो& नमः परमशिवसहचारिणि नरमुण्डमालाभरिणि
मनोरथसिद्धिकारिणि ॥
ओं क्षो& क्रो& नमः शंखकर्पूरगोक्षीरविशदेहिमशुभ्रदीर्घनिशिता
भुगुरदेवव्रह्मविष्णुशिवादिदेवा विदिपदे ॥
ओं क्षो& क्रो& नमः सकलमङ्गलप्रदायिनि विविधसकलैश्वर्याधायिनि
शवाकारनिजवल्लभाङ्गशायिनि ॥

५अ) ओं क्षो& क्रो& नमः नवकोटिमन्त्रमयविग्रहे कृतसकलदैत्यनिग्रहे
विस्तारितात्मभक्तानुग्रहे ॥
ओं क्षो& क्रो& नमः चन्द्रसूर्याग्निलोचने संसारवंधमोचने
निखिलागमप्रलोचने ॥
ओं क्षो& क्रो& नमः महाघोरतरकान्तारविहितवासे
त्रिभुवनभयजनकदारुणहासे परमशिवसामरस्यसविलासे ॥
ओं क्षो& क्रो& नमः वेदवेदान्तप्रसिद्धानुभावे स
मध्यासितमहादावेसन्त्रासदायक महाभीमरावे ॥
ओं क्षो& क्रो& नमः उत्पत्ति स्थापनसंहारकल्पना दक्षेसमुन्मुलितविपक्षे
पकल्पितभक्तजनरक्षे ॥
ओं क्षो& क्रो& नमः अनतिदीर्घखर्वपीवरि प्रलयकालजालधीवरि
महाश्मशाशवचेलचीवरि ॥
ओं क्षो& क्रो& नमः व्याघ्रचर्माम्वरा वृतकटिमहाप्रलयकालनति
सप्तार्णवैकतासमरभटि ॥
ओं क्षो& क्रो& नमः जय जय महायोगेश्वरियोगसंभवे योगगम्ये योगातीते
योगरूपे ॥

६अ) छ्री& क्ली& स्त्री& स्वाहा जय जय महाज्ञानेश्वरि ज्ञानसंभवे
ज्ञानगम्येज्ञातीते ज्ञानरूपे ॥
छ्री& क्ली& स्त्री& स्वाहा जय जय महामन्त्रेश्वरि मंत्रसंभवे मन्त्रगम्ये
मन्त्रातीते मन्त्ररूपे ॥
छ्री& क्ली& स्त्री& स्वाहा जय जय महासर्वेश्वरि सर्वसंभवे सर्वगम्ये
सर्वातीते सर्वरूपे ॥
छ्री& क्ली& स्त्री& स्वाहा जय जय धर्मेश्वरि धर्मसंभवे धर्मगम्ये
धर्मातीते धर्मरूपे ॥

६ब्) छ्री& क्ली& स्त्री& स्वाहा जय जय महाकामेश्वरि कामसंभवे कामगम्ये
कामातीते कामरूपे ॥
छ्री& क्ली& स्त्री& स्वाहा जय जय महामोक्षेश्वरि मोक्षसंभवे मोक्षगम्ये
मोक्षातीते मोक्षरूपे ॥
छ्री& क्ली& स्त्री& स्वाहा जय जय महानिर्वाणेश्वरि निर्वाणसंभवे
निर्वाणगम्ये निर्वाणतीते निर्वाणरूपे ॥
छ्री& क्ली& स्त्री& स्वाहा जय जय महाकैवल्येऽश्वरि कैवल्यसंभवे
कैवल्यगम्ये कैवल्यातीते कैवल्यरूपे ॥
छ्री& क्ली& स्त्री& स्वाहा ॥

७अ) ओं ह्री& हू& हा& फ्रे& क्षो& क्रो& जय जय जीव जीव त्रिशूलिनिमहावलिनि हू& फट्
नमः स्वाहा ॥
ओं ह्री& हू& हा& फ्रे& क्षो& क्रो& जय जय जीव जीव गुणातीतपरमसदाशिवमोहिनि
अपवर्गारसदोहिनि शुद्धसत्वगुणचैतन्यानन्दरोहिणि हू& फट् नमः स्वाहा


ओं ह्री& हू& हा& फ्रे& क्षो& क्रो& जय जय जीव जीव महानागराज
भूषितदशभुजदण्डे चण्डचण्डातितरकरवाल विनिकृतुसकलदैत्यदानव
शरीरखण्डेऽनिरन्तरा कृष्टकठोरवाणकोदण्डे हू& फट् नमः स्वाहा ॥
ओं ह्री& हू& हा& फ्रे& क्षो& क्रो& जय जय जीव जीव मनोविषयिवागगोचरे
त्रिगुणमयसर्वकलेवरे व्याघ्रचर्माम्वरे हू& फट् नमः स्वाहा ॥
ओं ह्री& हू& हा& फ्रे& क्षो& क्रो& जय जय जीव जीव प्रचलतरजटाभारभासुर
हिमकुन्दचन्द्रघनसानुसार कम्वुमेदुरे
जराजन्ममृत्युसंसारपाशभिदुरे हू& फट् नमः स्वाहा ॥
ओं ह्री& हू& हा& फ्रे& क्षो& क्रो& जय जय जीव जीव गुह्यातिगुह्यपरापर
शिवशक्तितत्वरूढे स्वानन्दानुभव स्वप्रकाशपदरूढे
सामरस्यविलासपर्यङ्कसमूढे हू& फट् नमः स्वाहा ॥

७ब्) ओं ह्री& हू& हा& फ्रे& क्षो& क्रो& जय जय जीव जीव प्रकृतिपुरुषातीत
निःश्रेयससाक्षिणि त्रिलोकीरक्षिणिदैत्यदानवभक्षिणि हू& फट् नमः स्वाहा ॥
ओं ह्री& हू& हा& फ्रे& क्षो& क्रो& जय जय जीव जीव निखिलकौलमतचक्रप्रवर्तिनि
समस्तदैत्यदानवराक्षस भयकर्तिनिमहामारी परमचक्रदुर्भिक्ष
महोत्पातसाध्वसनिवर्तिनि हू& फट् नमः स्वाहा ॥
ओं ह्री& हू& हा& फ्रे& क्षो& क्रो& जय जय जीव जीव विविधदिव्यास्त्र
संधानपारङ्गमेषडाम्नाय मन्त्रमयपञ्जरविहङ्गमे
समस्तशरीरभूषणी कृताष्टभुजङ्गमे हू& फट् नमः स्वाहा ॥
ओं ह्री& हू& हा& फ्रे& क्षो& क्रो& जय जय जीव जीव प्रपञ्चातीत निष्कलतुरीयाकारे
अखण्डनन्दपरमात्मवोधा मृतधारे निगमागमतत्वसारे हू& फट्
नमः स्वाहा ॥

९अ) ओं ह्री& हू& हा& फ्रे& क्षो& क्रो& जय जय जीव जीव महाखेचरी
प्रतिसिद्ध्यष्टकप्रदायिनि क्षीरोदार्सवोद्भूतसुधा देवी विशेषरसपायिनि
त्रिलोकी जठरोत्पन्न सत्वमात्ववन्धनकारिमायिनि हू& फट् नमः स्वाहा ॥
ओं ह्री& हू& हा& फ्रे& क्षो& क्रो& जय जय जीव जीव व्रह्मविष्णुशिवाराधनीय
चरणकमलेनृमुण्डावली भूषितगलेनिखिलसुरासुरा सह्यमहावले हू& फट्
नमः स्वाहा ॥

९ब्) जय जय सत्ययुगे प्रत्यङ्गिरे ॥
जय जय त्रेतायुगे सिद्धिलक्ष्मि ॥
जय जय द्वापरयुगे राज्यलक्ष्मि ॥
जय जय कलियुगे चण्डकापालिनि ॥
ओं ऐ& आ& ह्सौ& सौ& भगवति प्रसीद प्रसीद ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल स्फुर स्फुर
प्रस्फुर प्रस्फुर चट चट प्रचट प्रचट गाय गाय हस हस नृत्य नृत्य कह
कह किलि किलि किचि किचि त्वर त्वर धाव धाव हू& फ्रे& क्षो& क्रो& ह्री& व्योमके
शिविद्युक्तेशिपिङ्गकेशि फट् स्वाहा ॥

१०अ) हू& फ्रे& क्षो& क्रो& ह्री& भगमालिनि भगप्रदेभगप्रिये फट् स्वाहा ॥
हू& फ्रे& क्षो& क्रो& ह्री& मदनोन्मादिनि शवमांसकादिनि व्रह्मसंवादिनि
फट् स्वाहा ॥
हू& फ्रे& क्षो& क्रो& ह्री& नरकपालमालाभरण संसारसागरतरणे
त्रिभुवनवन्दितचरणे फट् स्वाहा ॥
हू& फ्रे& क्षो& क्रो& ह्री& वमदग्निमुखि महाशंखसमाकुले वराभयकरे
फट् स्वाहा ॥
हू& फ्रे& क्षो& क्रो& ह्री& कोटिकोटिफेरुपरिवृते करतालिकात्रासितत्रिपिष्टप
महासम्वर्तकालिन नृत्यप्रसारितपादाद्या न परिवर्ततसप्तद्वीपे फट्
स्वाहा ॥
हू& फ्रे& क्षो& क्रो& ह्री& वमदग्निमुखि महाशंखसमाकुले वराभयकरे
फट् स्वाहा ॥
हू& फ्रे& क्षो& क्रो& ह्री& चरणविन्यासा वनस्रीकृतकमठशेषभोगे
अध्यसितसमस्तभूतान्तः करणे निगमागमेति हासपुराणा गावरतत्वे फट्
स्वाहा ॥
हू& फ्रे& क्षो& क्रो& ह्री& भक्तजनहृदयसन्तापनिवारिणि
दुःखत्रयोद्भूतजङ्गम सकलसत्वतारिणि देवाधिदेव
हृदयारविन्दप्रकाशनैक मार्तण्डमण्डले फट् स्वाहा ॥

११अ) ओं ऐ& ह्री& हु& श्री& क्ली& स्त्री& हु& हौ& हा& क्षो& क्रो& फ्रे& ख्फ्रे& सकलदैत्य
दानवासुरयक्षरास भूतप्रेतपिशच कुष्माण्डडाकिनी शाकिनी
स्कन्दविनायकघोणकक्षेत्रपाल व्रह्मराक्षसगन्धर्व
गुह्यकसर्पनागग्रहनक्षेत्रभूतोन्मादत्रिविधोत्पात चौराग्निवन्यास्वा
पदयुद्धवज्रोपनाशनिमेघ विविद्युतपातवर्षे विषोपविषकृत्या
भिचालछलकपटदुर्भिक्ष नगरभङ्गदेशोपद्रवस्तम्भन
मोहनवशीकरणद्वेषोच्चाटना वेशनदनदीसमुद्रावर्तकान्तारवात्या
दहन्याकृमिकीटपटङ्गस्थलजजलजशूकपद
द्विपदचतुष्पदषष्ट्यदाष्टपदा नेकपद्ऽघोरान्धकार
महामारीवालग्रहहिंसक सर्वस्वापहारिमाया विदुर्जनाक्षदेवि
दस्युवञ्चकदिवाचररात्रिञ्चर सन्ध्याचरशृङ्गिनखिदंष्ट्रिदवोका
विविधो

१२अ) द्रवेत्योमां रक्ष रक्ष पाहि पाहि पालय पालय धारय धारय त्राय
त्राय गोपय गोपय समुद्धर समुद्धर अभयं कुरु कुरु प्रसीद प्रसीद
अनुकंपय अनुकंपय शत्रून्मे जहि जहि उन्मूलय उन्मूलय छिन्धि छिन्धै
भिन्धि भिन्धि मारय मारय नाशय हन हन उच्चाटय उच्चाटय स्तम्भय
स्तम्भय मथ मथ विध्वंशय विध्वंशय त्रट त्रट शोषय शोषय
विद्रावय विद्रावय त्रासय मोहय मोहय

१२ब्) विभ्रामय विभ्रामय स्फोटय स्फोटय जृम्भय जृम्भय हर हर
विक्षोभय मर्दय मर्दय दम दम तुरु तुरु हिलि हिलि किचि किचि दह दह भक्षय
भक्षय कृन्तय कृन्तय संचूर्णय संचूर्णय पीष पीष चोरय चोरय
भञ्ज भञ्ज भस्मि कुरु कुरु आकर्षय आकर्षय पातय पातय कम्यय
कम्यय उद्वेजय उद्वेजय आवेशय आवेशय उन्मादय उन्मादय भायय
भायय लुनीहि लुनीहि आस्कन्दय आस्कन्दय

१३अ) मुञ्च मुञ्च लुञ्च लुञ्च पिव पिव जारय जारय स्थापय स्थापय
स्वकपाल
व्लौ& भगवति ग्लौ& महाप्रचण्डिनि ॥ आ& विदारिणि औ& मुण्डमालिनि ॥
अ& महाग्रासे ह्री& पार्वति ॥ ह्र& महाभूतिनि ॥
ह्री& भुजङ्गकिणिके ॥ अजू& पातालवासिनि नववीजान्तश्चारिणि कोकामुखि ॥
हू& रक्ततुण्डि ॥ हू& रुद्रधारे ॥
हू& ऋक्षकर्णि ॥ हू& जालन्धरि ॥
हू& विद्युद्धासे ॥ हू& चन्द्रभाले ॥
हू& शवरिकिराति ॥ हू& कुशपानि ॥हू& क्षीरोदार्णवप्रिये

१३ब्) हू& सामरस्यलोलुपे ॥ हू& कैलाससञ्चारिणि ॥
हू& भक्तकल्पलतिके ॥ हू& मनोरथप्रदे ॥
हू& दिद्ध्यष्टकविधायिनि ॥ हू& राज्यैश्वर्यदायिनि ॥
हू& राजराजेश्वरि ॥ हू& विद्युत्कटाक्षे ॥
हू& सुधासमुद्रमग्नेनिधरिवक्रिणि ॥
हू& महाडामरि ॥ हू& भक्तिसेवाप्रणवे ॥
हू& चतुर्वर्गफलप्रदे ॥ हू& ओं अद्वैतेभुक्तिं देहि स्वाहा ॥
ओं अगोचरे सिद्धिं दापय स्वाहा ॥
ओं तुरीयातीते स्वपदं दर्शय स्वाहा ॥
ओं चिदानन्दरूपे ज्ञानंमयिधेहि स्वाहा ॥

१४अ) ओं नादविन्दु स्वरूपे योगं प्रकतय स्वाहा ॥
ओं चैतन्यमयाकारे सर्वज्ञतां पकल्पय स्वाहा ॥
ओं मन्त्रमयविग्रहे शिवशक्तिसामरस्य विभाव स्वाहा ॥
ओं ज्ञानदीपकलिके अज्ञानतिमिरमयनय स्वाहा स्वाहा ॥
ओं शव्दव्रह्ममयि सर्वविद्यां मय्यवस्थापय स्वाहा ॥
ओं संसारदावाग्निरूपे जन्ममृत्यु अपन स्वाहा ॥
ओं भक्तजनवत्सरे दुर्गतिं मेशमय स्वाहा ॥
ओं त्रयी स्वरूपिणि पापादुन्मोचय स्वाहा ॥

१४ब्) ओं सर्वान्तर्यामि नित्वत्वयि भक्तिं वितर स्वाहा ॥
ओं सर्वाभिप्रायवेदिनि त्रिवर्गेणमांयोजय स्वाहा ॥
ओं प्रसादसुमुखि वरेरूपछन्दय स्वाहा ॥
ओं निगमागमारण्यसिंहि ममताहन्तामपनुद स्वाहा ॥
ओं नवाक्षरी मन्त्रकृताधिवासे सर्वात्संकटा दुत्तारय स्वाहा ॥
ओं सर्वापदप्रभञ्जनि सर्वेषांनः कुशलं कुरु कुरु स्वाहा ॥
ओं श्रा& क्ली& ह्सौ& सौ& सूर्यासने प्रभारूपेतुभ्यं नमः फट् ॥
ओं श्री& क्ली& ह्सौ& सौ& चन्द्रासने चन्द्रिकारूपेतुभ्यं नमः फट् ॥

१५अ) ओं आ& क्ली& ह्सौ& सौ& पावकासने ज्वालारूपेतुभ्यं नमः फट् ॥
ओं आ& क्ली& ह्सौ& सौ& हिरण्यगर्भ्वासने सृष्टितुभ्यं नमः फट् ॥
ओं आ& क्ली& ह्सौ& सौ&नारायणासने स्थितिरूपेतुभ्यं नमः फट् ॥
ओं आ& क्ली& ह्सौ& सौ& महाभैरवासने प्रलयरूपे तुभ्यं नमः फट् ॥
ओं आ& क्ली& ह्सौ& सौ& वेदासने गायत्री रूपेतुभ्यं नमः फट् ॥
ओं आ& क्ली& ह्सौ& सौ& यज्ञासने होमरूपेतुभ्यं नमः फट् ॥
ओं आ& क्ली& ह्सौ& सौ& आचारासने धर्मरूपेतुभ्यं नमः फट् ॥

१५ब्) ओं आ& क्ली& ह्सौ& सौ& पर्जन्यासने वृष्टिरूपेतुभ्यं नमः फट् ॥
ओं आ& क्ली& ह्सौ& सौ& अन्नासने प्राणरूपेतुभ्यं नमः फट् ॥
ओं आ& क्ली& ह्सौ& सौ& मन्त्रासने दीक्षारूपेतुभ्यं नमः फट् ॥
ओं आ& क्ली& ह्सौ& सौ& व्रतासने तपोरूपेतुभ्यं नमः फट् ॥
ओं आ& क्ली& ह्सौ& सौ& अनन्तासने धरित्रिरूपेतुभ्यं नमः फट् ॥
ओं आ& क्ली& ह्सौ& सौ& निराकारासने आकाशरूपेतुभ्यं नमः फट् ॥

१६अ) ओं आ& क्ली& ह्सौ& सौ& त्रिभुवनासने सर्वशक्तिरूपेतुभ्यं नमः फट् ॥
ओं आ& क्ली& ह्सौ& सौ& सर्व सत्वासने चेष्टारूपेतुभ्यं नमः फट् ॥
ओं आ& क्ली& ह्सौ& सौ& मूलाधारासने योगरूपेतुभ्यं नमः फट् ॥
ओं आ& क्ली& ह्सौ& सौ& व्रह्मासने नित्योदितानन्दरूपेतुभ्यं नमः फट् ॥

ऐ& फ्री& फ्रू& छ्री& छ्र& त्री& थ्री& द्री& ध्री& न्री& प्रवृत्तिमार्गद्वय
प्रवर्तयित्रिद्व्याकारप्रकटयि त्रिदेवाऽदिषडाम्नाय वेद्यकथमिवक्रमस्ते
महिमानं त्वमसिप्रत्यङ्गिरा ॥

१६ब्) फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिद्धिलक्ष्मीः ॥ फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिराज्यलक्ष्मिः ॥
फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिचण्डकापालिनि ॥ फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिगुह्यकाली ॥
फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिभद्रकाली ॥ फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिकामकलाकाली ॥
फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसित्रिपुरसुन्दरी ॥ फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिमातङ्गिणी ॥
फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिकुव्जिका ॥ फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिहरसिद्धिः ॥
फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिवाला ॥ फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसितारा ॥
फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिभैरवी ॥

१७अ) फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिचामुण्डा ॥ फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिछिन्नमस्ता ॥
फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसि उग्रचण्डा ॥ फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिचण्डेश्वरी ॥
फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिभुवने ॥ फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिमहिषमर्दिनी ॥
फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिवागीश्वरी ॥ फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिशिवदूती ॥
फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिमहालक्ष्मी ॥ फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिराजराजेश्वरी ॥
फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसि स्वर्णकोटेश्वरी ॥
फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिजयझंकेश्वरी ॥
फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसि उछिष्टचाण्डालिनी ॥
फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिकालरात्रि ॥

१७ब्) फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिक्षेमंकरी ॥
फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिवाभ्रवी ॥
फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसिरक्तदन्तिका ॥
फ्रे& ख्फ्रे& त्वमसि अपराजिता ॥
फ्रे& ख्फ्रे& ऐ& औ& हौ& ह्सः शौ& निवृत्तिरूपायास्तेरूपं विवरीतुमशक्यं ॥
ओं अशरीरा अनिन्द्रिया अरूपरसगन्ध स्पर्शशव्दा तत्वमसि ॥
ओं ओं अजन्ममरणा अवाक्याणि पादपायूपस्था अवचनादानगमनोत्सर्ग
व्यवाया तत्वमसि ॥
ओं ओं त्रिकाल व्यापिनी त्र्यक्षरात्रियम्वका तत्वमसि ॥
ओं ओं मनोनिगमानासाद्या नामाकारवर्जिता तत्वमसि ॥

१८अ) ओं ओं निर्विकारा निरञ्जना निरीहा निस्सङ्गा निर्गुणा तत्वमसि ॥
ओं ओं सनातनी समस्तसाक्षिणी सर्वभूतनिगुढा सर्वेश्वरी सर्वाराध्या
तत्वमसि ॥
ओं ओं सच्चिदानन्दा सनातनी सत्वगुणमयी सपरिवृंहणा समदर्शना
तत्वमसि ॥
ओं ओं केवलाकैवल्यरूपा कल्पनातिगाकाल व्यापिनी कालरहिता तत्वमसि ॥
ओं ओं अद्वैता अलक्षिता असंगा अगोचरा अद्वया अखण्डानन्दा अकारणा
तत्वमसि ॥

१८ब्) ओं ओं कालिकसम्वन्धा भाववती कूटस्था कलनावर्जिता कल्पनारहिता
कारणातीता कर्मसहचरी केवलानुभवेवेद्या तत्वमसि ॥
ओं ओं निःप्रप ञ्चा शुद्धवुद्धिनित्यसत्यमुक्त स्वभावा प्रत्यक् चैतन्यमयी
विकारपरिनामशून्या आवरकविक्षेपादि शक्तिपरित्यक्ताविपाक द्वेषरागा
विद्यामोहनिर्मुक्ता तत्वमसि ॥
ओं ओं नित्यज्ञानेछा कृतिमहोदय निवृत्तिवैराग्यैश्वर्य संपूर्णा तत्वमसि ॥

१९अ) ओं ओं उपाध्यहंकार मनोवासनायो निचिन्तवुद्धिनि सर्गहीना तत्वमसि ॥
ओं ओं प्रमाण प्रत्ययसत्ता परमार्थशूक्ष्मा भासनिमित्तहे तु सम्वन्धिनी
तत्वमसि ॥
ओं ओं सदसदुपसम स्मृतिप्रवोधा शयलयैकात्म्यसाक्षिणी तत्वमसि ॥
ओं ओं यावदेकनिर्गुण व्रह्मवाचक शव्दवाच्या तत्वमसि ॥
ओं ओं वाच्यवाचक भावसिद्धि शिवशक्तिसमयरहस्य संप्रदायिनी तत्वमसि ॥

१९ब्) ओं ओं निर्वाण कैवल्यामृतमुक्तिनिःश्रेय सापवर्गमोक्षलय
सामरस्यैकात्म्य प्रत्यगानन्दानुभव तादात्म्याव्दि पर्यायपददायिनी
तत्वमसि ॥
ओं ऐ& ओं ह्री& च्छ्री& क्ली& स्त्री& श्री& ह्र& हा& हौ& क्षो& क्रो& फ्रे& ख्फ्रे& ह्स्फ्रे&
ह्स्ख्फ्रे& नमः सकलमन्त्रयन्त्र मातर्जगज्जननि परमकारुणिके
दयार्द्रमानसे सर्वहितकारिणि जन्ममृत्युवासनामय संसार
सागरोद्धारिणि द्विविधाकारचारिण तत्तत्पदप्रकाशनाशय तत्तन्नामगीते ॥

२०अ) ऐ& योगभूमिरसि ॥ ओं अविषयासि ॥ ह्री& निस्संकल्पासि ॥ च्छ्री& शाम्भवासि ॥
क्ली& तुरीयासि ॥ स्त्री& निर्वाणासि ॥ श्री& अपुनर्भवासि ॥ ह्र& नादविन्दुरसि ॥
हा& परमात्मासि ॥ हौ& नित्योदिताखण्डपरमानन्दासि ॥
क्षौ& पत्यक् चैतन्यरूपासि ॥ क्रो& निर्विकारनिरञ्जनासि ॥ फ्रे&
शुद्धनित्यसत्यकलासि ॥ ख्फ्रे& कालत्रयातीतासि ॥
ह्स्फ्रे& जीवात्परमात्माभिन्नासि ॥

२०ब्) ह्स्ख्फ्रे& असम्वेदनानुभवासि नमः कैवल्यामृतासिसाकारा
भोगसिद्ध्स्वर्गप्रदासि श्क्ष्म्ल्व्र्यी& सिमृक्षोन्मुखासि श्क्ष्म्ल्व्र्यू&
आदिसर्गकर्यसि ॥
श्क्ष्म्ल्व्र्यी& भौतिकसर्गकार्यसि ॥
श्क्ष्म्ल्व्र्यू& तिर्यक्तर्गविसर्गकर्यसि ॥
ह्स्क्ष्म्ल्व्र्यी& पालनकर्यसि संहारकर्यसि ॥ ह्स्क्ल्यी& व्यवस्था कर्यसि ॥

२१अ) ह्स्ख्ल्ह्री& संस्थानकर्यसि ॥ स्क्ल्ह्री& मर्यादा कर्यसि ॥
स्घ्र्क्षी& वस्तुसंयोगगुणकर्यसि ॥ निर्गुणोपास्या निराकारा विभाव्या ॥
फ्रे& फ्रे& फ्रे& सर्वसिद्धियोगिनी ॥ ह्री& ह्री& ह्री& सर्वसिद्धिमाता ॥
ओं ओं ओं नित्योदितानन्दनन्दिता ॥ ह्र& ह्र& ह्र& सकलकुलचक्रनायिका ॥
क्रो& क्रो& क्रो& भगवती चण्डकापालिनी ॥
हौ& हौ& हौ& परमहंसिनी निर्वाणमार्गदा ॥
हा& हा& हा& विषमोपप्लवप्रशमनी ॥
क्षो& क्षो& क्षो& सकलदुरिता रिष्टक्लेशदलनी ॥

२१ब्) आ& आ& आ& सर्वापदम्भोधितारिणी ॥
छ्री& छ्री& छ्री& सकलशत्रुप्रमथिनी ॥
क्ली& क्ली& क्ली& नररुधिरान्त्रवशाभक्षिणी ॥
स्त्री& स्त्री& स्त्री& सकलमनोरथसाधनी ॥
 ख्फ्रे& ख्फ्रे& ख्फ्रे& परमकारुणिका महाभैरवरूपधारिणी ॥
ह्स्खौ& ह्स्खौ& ह्स्खौ& त्रिदशवरणता सकलमन्त्रमाता ॥
ऐ& ऐ& ऐ& प्रणतजनवत्सला कालनाशिनी ॥
ग्लू& ग्लू& ग्लू& सदामृतधारावर्षिणी प्रसन्नानना ॥

२२अ) क्षो& क्षो& क्षो& निगमागम कुलाकुलचक्रसमय प्रवर्तयित्री
महाकान्तारवास प्रिया ॥
ह्रौ& ह्रौ& ह्रौ& दारिद्र्यदुःखदुर्गाति हारिणी प्राणतजनदैन्यविषाद नाशिनी

फ्रौ& फ्रौ& फ्रौ& नरमुण्डकी कसमालाभरणा तदिदुग्रपिङ्गल
महाजटाभारचर्चिता ॥
है& है& है& उल्कामुखकोटिफेरु परिवृता स्वेछाचारविहारिणी ॥
ह्सौ& ह्सौ& ह्सौ& कोटिकानानल ज्वलितमुखी महाज्वालाजालजिह्वादरी
नयनान्तकोणनिर्यत्कटाक्ष स्फुलिङ्गिनी ॥

२२ब्) स्झ्री& स्झ्री& स्झ्री& प्रज्वलछवसंकुलमहाभीम श्मशानवासिनी
हस्तिगोमायुसिंहा भारुण्डनादिनी दुष्टनिग्राहिणीदिति जदनुजनि कृत्तिनी ॥
स्क्ष्ह्री& स्क्ष्ह्री& स्क्ष्ह्री& यावदेकसत्वजाति सम्मोहिणी क्षीरसागरा
छाछमहारुद्रोत्सङ्गवासिनी महामांसाशिनी ॥
ह्म्ल्व्रा& ह्म्ल्व्रा& ह्म्ल्व्रा& व्रह्माणी हामेश्वरी कौमारी वैष्णवी वाराही
नारसिंही ऐन्द्री चामुण्डाशिवदूती चण्डयोगेश्वरी महाकापालिनी
कालमुखी यमघण्ठाकराली महायोगिनी वारुणीवाय्व्या आग्नेयी ऐशानी
महात्राशकारिणी महाप्रलयकालरङ्गनर्तकी ॥

२३अ) ह्स्ख्ल्ह्री& ह्स्ख्ल्ह्री& ह्स्ख्ल्ह्री& हुहुङ्कारघोरराविणी नरशार्दूलचर्मावृत
सकलविग्रहा लेलिहानरनाकरालानना सर्वायुधधरिणी
कुक्कुटगृद्धकाकोलूकछत्रा ॥
स्क्ल्द्र्ख्री& स्क्ल्द्र्ख्री& स्क्ल्द्र्ख्री& महाडामरी फेत्कारिणी सितनीलपीतरक्तचर्म
भुजङ्गभोगभूषितकलेवरा अनन्तकोटिवक्त्रनेत्रकरचरणा ॥

२३ब्) ह्म्ग्क्ष्म्ल्व्र्यू& ह्म्ग्क्ष्म्ल्व्र्यू& ह्म्ग्क्ष्म्ल्व्र्यू& अकारोकारमकारकारनिर्मित
गृहान्तश्चारिणी महागगनसिंहासनाधिरूढा करङ्गकङ्कालमालिनी
भीमनादिनी ॥

२४अ) य्ग्ल्क्ष्म्ह्र्ह्रू& य्ग्ल्क्ष्म्ह्र्ह्रू& य्ग्ल्क्ष्म्ह्र्ह्रू& पीवरी धीवरी डाकिनी शाकिनी
योगिनी भोगिनी कामोन्मादिनी दुरितदुःकोत्सादिनी र्क्ष्म्छ्री& र्क्ष्म्छ्री& र्क्ष्म्छ्री&
जम्भिनी स्तम्भिनी मोहिनी दोहिनी नायिकागायिका तपिनीतापिनी करालीविकराली
आवेशिनी प्रवेशिनी धरणी र्झ्र्क्षी& र्झ्र्क्षी& र्झ्र्क्षी& सर्वभूतदमनि
महादंष्ट्राकराला कालरात्रि सहचरी कोटिमार्तण्डमण्डल समप्रभा ॥

२४ब्) महाप्रलयाग्नि दुःसहस्पर्शा विभूतिभूषितसर्वकलेवरा ॥
त्रैलोक्योड्डामरी शिवहृदम्वुजभ्रमरी श्वेताहारी रक्तचामुण्डा ॥

ख& ख& ख& ह& ह& ह& सर्व विद्येश्वरी श्वेतसरस्वती ओं ओं ओं ह्री& ओं हू& ओं हा& ओं
फ्रे& ओं क्षौ& ओं क्रौ& ओं न& ओं मः जगज्जननि जगदानन्दिनि जगदाश्रये
जगद्रूपे जगत् पालिनि जगत् संहारिणि जगद्वन्दे ॥

ह्री& ओं ह्री& ह्री& ह्री& ह्र& ह्री& हा& ह्री& फ्रे& ह्री& क्षो& ह्री& क्रो& ह्री& न& ह्री& मः
दुर्गेदुर्गदैत्यविमर्दिनी दुर्गोत्तारिणि दुर्गप्रभञ्जिनि दुर्गतिनाशिनि
दुर्गकर्मसाधनि दुर्गतानुकम्पिनि ॥

२५अ) हू& ओं ह्र& ह्री& हू& हू& हू& फ्रे& ह्र& क्षो& ह्र& क्रो& ह्र& न& ह्र& मः
कौलाचारव्रतिनि कुलमार्गप्रवर्तयित्रि कुलकुट्टिनि कौलिकप्रतिपालिनि
कुलाकुलचक्रनायिके कुलवस्तुसन्तोषिणि कुलद्वेषिविनाशिनि ॥

हा& ओं हा& ह्री& हा& ह्र& हा& हा& हा& फ्रे& हा& क्षो& हा& क्रो& हा& न& हा& मः
वेदमार्गप्रकाशिनि वेदवेदान्त वेद्येवेदनामात्रविभाव्ये वेदनाहारिणि
वेदोपगीयमानमहिमे वेदमयरुद्राधिरूढे प्रतिपाद्यकर्मफलदात्रि ॥

२५ब्) फ्रे& ओं फ्रे& ह्री& फ्रे& हू& फ्रे& हा& फ्रे& फ्रे& फ्रे& क्षो& फ्रे& क्रो& फ्रे& न&
फ्रे& मः योगीश्वरी योगिजनहृदयारविन्द कृतावासे योगमयशरीरे
योगप्रकाशिके योगकवियोगप्रदनाद्रीविहितवासे योगदाननाशितभववन्धे ॥

२६अ) क्षो& ओं क्षो& ह्री& क्षो& हू& क्षो& हा& क्षो& फ्रे& क्षो& क्षो& क्षो& क्रो& क्षो& न& क्षो&
मः परमात्तव्योमचारिणि परमप्रचण्डदोर्दण्डमण्डले
परमपदप्रकाअशिनि परमपरापरमन्त्रवर्सक्रमदीक्षा
योगज्ञानमयविग्रहे परमपुरुषप्रकृतिरूपे परमानन्दचैतन्य
परिनामभषितापदे परम्संकटतारिणि ॥

क्रो& ओं ह्री& क्रो& ह्र& क्रो& हा& क्रो& फ्रे& क्रो& क्षो& क्रो& क्रो& क्रो& न& क्रो& मः
चतुर्दशभुवनेश्वरि

२६ब्) चतुर्वर्गफलदायिनि चतुरशीतिकोटि व्रह्माण्डसृटिस्थिति
प्रलयरूपकर्मत्रितयसंस्कारोत्पादिनि चतुर्मुखचतुर्भुजचतुरूपादि
सुरनिकरसेवितचरणारविन्दे चातुर्वर्ण्यचातुराश्रम्य विहितसदाचार
व्रतयज्ञधर्महोमयनियमप्रिय चतुरङ्गसमरकर्मप्रिय महाभैरव
सहधर्मचारिणि चतुरुधदिमालावलयित भूमिमण्डलवर्ति
प्राणिमात्रहृदयाधिष्ठात्रि नमः ॥

२७अ) प्रत्यङ्गिरे नमः ॥
प्रतिव्यक्ति स्वभावसंज्ञाकर्मप्रेरिके नमः ॥
प्रत्यादिष्टसकलप्रणतजनदुरिते नमः ॥
प्रतिफलितमाया शक्तिप्रज्ञे नमः ॥
प्रत्यङ्गपुञ्जितयन्त्रमन्त्रे नमः ॥
प्रतिभाभावितभक्तजेने नमः ॥
प्रतिनियतदैवफलापहारिके नमः ॥
ओं ह्री& हू& हा& फ्रे& क्षो& क्रो& नमः नवाक्षरी घटित सर्व शरीरे ॥
ओं रूपप्राणे ॥ ह्री& रूपमस्तके ॥ हू& रूप हृदये ॥
हा& रूपवाहुपृष्ठजठरे ॥
फ्रे& रूपपार्श्वकट्यभजघने ॥

२७ब्) क्षो& रूपजंघापादे ॥
क्रो& रूपहस्तपादाङ्गुलिनि नखेनमो रूपसर्वाङ्गप्रत्यङ्गे
ओमित्यकारोकारमकारेण नारायणहिरण्यगर्भसदा शिवरूपा ॥
ह्री& मितिहकाररे फेकारेण व्योमाग्निरमारूपा ॥
हू& मतिहकारोकारेण रोषावेशरूपा ॥
हा& मितिहाकारेण पञ्चभूतवन्धनरूपा ॥
फ्रे& मितिफकाररेफैकारेणचतुर्वर्गविद्याविभवरूपा ॥
क्षो& मितिककारषकारुकारेण सृष्टिप्रतिपालसंहाररूपा ॥

२८अ) क्रो& मितिककाररेफौकारेण जन्मजरामरण नाशसृटिरूपा नमः ॥
इति नकारमकारविसर्गेण देवमन्त्रहोमान्न प्राणायुष्कालरूपा ॥
विपरीतयोगेन व्रह्मास्त्रवैष्णवास्त्र पाशुपतास्त्राग्नेयास्त्र
वारुणास्त्रयाम्यास्त्र गारुडास्त्र संहारास्त्रधारिणी ॥
अनुलोमप्रतिलोमाकारेण त्रयस्त्रिं शत्कोटिदेवरूपा ॥
अष्टादशविद्यारूपा ॥ नवनिधिरूपा ॥ अष्टसिद्धिरूपा ॥
पञ्चभूतरूपा ॥

२८ब्) त्रिकालरूपा ॥ व्रह्मैकरूपा ॥
तार आद्योद्वितीयालज्जा तृतीयारोषश्चतुर्थोऽध्वा पञ्चमी शाकिनीषष्ठी
धारणसप्तम्यर्गलाऽष्टमः प्रणामदुति ॥
वासना मोहजन्मजरामरणगर्भवासता
पत्रयसंसारेभ्यस्तारयतीतितारः ॥
पापाकार्यपरस्वा हरणहिंसापैशून्या नृतविवादा धर्मेभ्योलज्जित इति
लज्जा ॥
गर्वानादरपरिभवधिक्षेपहर्षा सूयादैन्यद्वेषेभ्यो रोषयतीतिरोष वेद
धर्माचारयज्ञतपोमन्त्रप्रतिष्ठा पुण्येभ्योध्वानयतीत्यध्वा ॥

२९अ) अनुभवोपासनानियम प्रकर्षविद्या वैराग्यधर्मार्थनिश्चयेभ्यः
शक्तोतीतिशाकिनि ॥
भूचराप्चर खचर विचर तरुचर गृहचराङ्गचरान्तश्चरेभ्यो
धारयतीतिधारणा ॥
कुशास्त्रकुमत कुव्यवहार कुशिक्षा कुपथ कुवुद्धि कुशिल्प
कुनयेभ्योर्गलयतीत्यर्गला नमनोन्नमनपर्यवस्थापन
प्रतीकारसंकटविषादविछेदविरोधेभ्यः प्रणामयतीति प्रणामः
सर्वनिगमागमतत्वं ॥

३०अ) ओं ह्री& ह्र& हा& फ्रे& क्षा& क्रो& नमः इदमुपासितव्यं सत्यं सत्यं
सत्यं ओं ह्री& हू& इति सत्ययुगे ॥
हा& फ्रे& क्षो& इति त्रेतायुगे ॥
क्रो& नमः इति द्वापरयुगे ॥
ओं ह्री& हू& हा& फ्रे& क्षो& क्रो& नमः इति कलियुगे तदेतत् सर्व निगमागमवेदि
भिरभ्यस्तं ॥
मुमुक्षुरे तद्भ्यस्यन्न पुनर्भवाय ॥
गायत्री वान्वहमध्येतव्या ॥
सेयं सर्व निगमागममाता ॥
ख्प्रे& सिद्धिलक्ष्म्यै विद्महे कालिकायै धीमहि ॥

३०ब्) तन्नः संकर्षणी प्रचोदयात् ॥
पंचविंशत्यक्षरावा एषागायत्री ॥
पञ्चविंशतितत्वरूपा एतामधीत्य ॥
पञ्चविंशति तत्वान्पतिक्रामति ॥
एषा वानवाक्षरी सहचरी तामधीत्यैतामधीते व्रह्ममाप्नोति ॥
ओं चण्डकापालिन्यै विद्महे कालसंकर्षण्यै धीमहीतन्नः सिद्धिलक्ष्मीः
प्रचोदयात् ॥
ऊनत्रिं शदक्षरावा एषा युताक्षरी गायत्री एतामधीत्यव्रह्मसायुज्य
माप्नोति ॥
ह्री& हू& फ्रे& छ्री& हौ& क्री& क्रो& फ्रे& स्त्री& श्री& फ्रो& जू& व्लौ& व्री& स्वाहा एषा
वानक्षरीसमाना एषा वाप्यधीता तदेव फलं गमयति षोडशाक्षरी
मन्त्रः षोडशक आसादयति षोषशापिभोगानु प्रयछति अविग्रहापि
सविग्रहासौम्यापिमहोग्रा ॥
ऐहिकामुष्मिक सुखसिद्धि विधायिनी ॥
ओं ऐ& आ& सर्वविद्या प्रदात्री ।
श्री& ह्री& फ्रे& छ्री& ख्फ्रे& प्रचुरधनप्रदा ॥
क्ली& स्त्री& हू& क्रौ& व्लू& क्षौ& स्त्रीपुत्रगृहसौख्या रोग्यायुः कारिणी ॥
न्छ्री& औ& ग्लू& हौ& स्त्रा& ह्सौ& सौ& समरविजयशत्रुनाश राज्यप्रदा ॥

३१ब्) क्ष्ह्री& क्लू& ग्ली& र्म्क्षी& व्लौ& रोगोप्यातसर्पशत्रुमारी भयनाशनी ॥
ओं ओं ओं ह्स्ः शो& कैवल्यमोक्षविधायिनी ॥
ऐ& ऐ& ऐ& हौ& हौ& हौ& यमनियमतपो योगज्ञानवैराग्य भावयित्री ॥
ह्स्क्ष्म्ल्व्र्यी& ह्स्क्ष्म्ल्व्र्यू& सर्वकार्य सर्वमनोरथ सर्वसिद्धिविधायिनी ॥
ख्प्रा& ख्फ्री& ख्फ्रू& ख्फ्रै& ख्फ्रौ& भूतप्रेतपिशाच यक्षरक्षो
गन्धर्ववेश प्रशमनी ॥
ह्स्ख्फ्रा& ह्स्ख्फ्री& ह्स्ख्फ्रू& ह्स्ख्फ्रै& ह्स्ख्फ्रौ& दुर्भिक्षमरकाकाल
मृत्युपरचक्रभय प्रमर्दिनी ॥

३२अ) खा& ख्यू& ख्य& कै& खौ& अवग्रह ज्वराभिचार कलहद्वेषोच्चाटन
प्रभञ्जनी ॥
ह& ह& ह& है& है& है& चौरकान्तारस्थ वन्यश्वापददण्ड
श्रूकपुछविषविलेय दंष्ट्रिरोमगलभीति हारिणी ॥
क्ष& क्ष& क्ष& क्षै& क्षै& क्षै& कपटिवञ्चकदस्यु धूर्तघातिनी ॥
भ& भ& भ& भै& भै& भै& विविधो पद्रवप्रशमनि ॥
ओं ऐ& फ्रे& ह्री& हू& छ्री& क्ली& स्त्री& ह्सौ& नमोभगवत्यै चण्डकापालिन्यै ॥
हा& क्षो& क्रो& हौ& आ& नमः प्रत्यङ्गिरायै कोटिकोटिदोर्दण्ड मण्डितायै
महाभीम श्मशाननिलयायै महाभद्रहृदयपर्यङ्काधि रूढायै ॥

३२ब्) क्रौ& ग्लौ& फ्रे& ख्फ्रे& ह्फ्रे& ह्स्ख्फ्रे& शू& अक्षू& अक्ष्ह्रू& अक्ष्म्छ्रू&
स्ज्त्र्क्षू& महाकुणपवाहरणायै अजितायै अपराजितायै अलक्षितायै अमितायै
अगोचरायै अप्रतिहतायै अनुत्पन्नायै अद्वैतायै ।
शतकोटिचरणनेत्र सहस्रवृन्दमस्तके ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल स्फुर स्फुर
प्रस्फुर प्रस्फुर चट चट प्रचट प्रचट कह कह धम धम हस हस गाय
गाय जय जय जीव जीव व्याघ्रचर्माम्वरे करालरूपिणि मुण्डमालिनि ॥
फ्रे& फ्रे& फ्रे& क्षो& क्षो& क्षो& क्रो& क्रो& क्रो& धरित्री धारिणि व्रह्मवादिनि
व्रह्मामृतमयि नमोस्तुते प्रत्यङ्गिरे नमोस्तुते नमोस्तुते सिद्धिलक्ष्मि ॥
नमोस्तुते चण्डकापालिनि नमोस्तुते साम्राज्याधि दैवते ॥
नमोस्तुते महामाये अरूपेवहुरूपे विश्वरूपे नानारूपे रूपातीते ॥

३३ब्) सकलासुरदैत्यदानवोछादिनि कृत्याभिचारग्रहनक्षेत्रदोष प्रणाशिनि ॥
यक्षराक्षस भूतपिशाचवेतालप्रेतडाकिनी कूष्माण्डप्रभञ्जनि ॥
गायत्रि सावित्रि महित्रि प्रसवित्रि अग्निभयनिकृन्तनि विद्युदशनिवर्षसनिन्या
प्रमर्दिनि ॥
सागरवहित्रनौवात्या घूर्स्मिकाप्रमोचिनि रात्र्य अन्धकारकान्तार
धुःखौघसंकटतारिणि राजकुलविषोपविषज्वरादिरोग प्रशमनि
अभयेभयहारिणि ॥

३४अ) अघने अघनाशिनि ॥ अदीनेदैन्यखण्डिनि ॥
अचिन्त्ये चिन्तानोदिनि ॥ अमुग्धे मोहापनयिनि ॥
अजडेजाड्यहारिणि ॥ अमाये मायादाहिनि ॥
अवन्धवन्ध छेदिनि ॥ अरोगेरोगोन्मूलिनि ॥
अनुग्राहिके जन्ममरणभयभेदिनि ॥
अक्षणीये लक्षणदायिनि ॥
अव्यक्ते व्यक्तिकरि अमृते अमृतफलप्रदे ॥
सत्ये सत्यपदप्रदात्रि ॥ नित्येनित्यानन्दकरि ।
ईहनभिभूते समीहा संपादयित्रि ॥

३४ब्) प्रमाणावेद्ये प्रमाणसिद्धिदायिनि ॥
अगुणाविग्रहाऽनुपास्यास गुणावयवोपासनीया हिमशंखकुण्डवर्णा
पञ्चवदनाप्रतिवनयना पिङ्गलजटामुकुटभीषिता ॥
व्याघ्रचर्मपरीधाना नरमुण्डमालिनी ॥
भद्रहृदयाधिरूढा योगपट्टावनद्धनानु द्वयाद्वयहस्ता
त्रिशूलखड्गमुण्डाङ्कुश खट्वाङ्गकपालपाशघण्टा वराभयकारा
अचिन्त्यामितवलपराक्रमा दैत्यदानवासुरमांसरुधिर प्रियासमरविजय
सम्पादनकरी भक्तजन स्वर्गमोक्षविधायिनी श्मशानवासिनी
महाघोररावाम हाट्टाट्टहासकरी योगिनी डाकिनी चामुण्डाभैरवी
सहचारिणी ॥

३५अ) वृहल्लम्वमानोदरी त्रिदिवभूमण्डलरसातलादि चतुर्दशभुवनेश्वरी ॥
नवकोटि मन्त्रमयकलेवरा महाभीषणतराकारधारिणी ॥
गर्भवासजन्म जरामृत्युहारिणी ॥
गुह्यातिगुह्य परापरशिवशक्तिसमरस्यसमय कुलाकुलचक्रे
परमतत्वगूढा प्रकृत्यपरशिवनिर्वाणफलदायिनी ॥

३५ब्) विकरालद्वात्रिंशद्दण्डपंक्ति कोटिसंचूर्सितकोटिव्रह्माण्डा ॥
चतुर्द्वारचतुरस्र त्रिरेखाष्टार द्वादशदलाष्टदलषट्कोण
वुन्दुरूपगृहमध्यवासिनी नववर्समयमन्त्रराजोपासनीया
नवनवार्सघटितकूटमूर्तिधरा ॥
सर्व वाङ्मयविद्यातिगा ॥
नादविन्दुकलाकारा व्यादिव्यामोघमूर्तिधर त्रयस्त्रिंशत्कोटिशस्त्रास्त्र
सन्धानग्रहणी ॥

३६अ) निखिलागमदैशिकाराधनीया ॥
महाखेचरी मुद्रापकटयित्रि ॥
महाशंखविनिर्मित सकलाभरणा ॥
मदनोन्मादिनी ॥
निखिलदुःखोत्सादिनी कपालमालाभरणा ॥
कोटिविद्युदर्वादुर्निरीक्षाकारा ॥
महामांसखण्डकवलिनी वमदग्नि ज्वालमुखमण्डल विभूषिता ॥
कोटि कोटि फेरुपरिवृता ॥
चर्चरीकरतालिकात्रासित त्रिभुवना ॥
नृत्यप्रसारितकरपादाद्या तनमदुन्नमत्कमठशेषभोगा
कुरुकूल्पाकुणपछत्रा उलूपोषिणी ॥
नरकङ्कालकरङ्करङ्किनी रक्ततुण्डी श्वेतमुखी
चण्डातिचण्डीयमघण्ठा ॥
ज्वालामालिनी ॥ भुवनहरी ॥
वेतालाननास्कन्दघोनकसहवाऽसा कौमारव्रतिनी ॥
कुलकुट्टिनी ॥ महारौद्री ॥ सर्ववीजप्रसवित्री ॥ कालेश्वरी ॥ कालवञ्चनी ॥
महाभैरवी ॥ जगन्माता ॥ जगदानन्ददायिनी ॥

३७अ) प्रलयानलवक्त्रा ॥ मृत्युञ्जयविलासिनी ॥
कुक्कुटकपोतलालनी ॥ वर्हिवर्हावतंसिनी ॥
महाडामरी पदाघूर्णितरक्तनेत्रा ऋद्धिवृद्धिश्चान्तिस्वस्ति तुष्टिपुष्टिकरी
देवदेवेश्वरी ॥
सर्वाशुभघातिनी सर्वशुभङ्करी न्ह्क्ष्म्ल्व्र्यी& श्क्ष्म्ल्व्र्यी& ह्स्क्ष्म्ल्व्र्यू&
न्ह्क्ष्म्ल्व्र्यू& श्क्ष्म्ल्व्र्यू& ह्स्क्ष्म्ल्व्र्यू& न्ह्क्ष्म्ल्व्र्यू& श्क्ष्म्ल्व्र्यू&
ह्स्क्ष्म्ल्व्र्यू& ओं ह्री& हू& हा& फ्रे& क्षो& क्रो& नमः ह्री& हू& फ्रे& च्छ्री& ह्सौ& क्री&
क्रो& फ्रे& स्त्री& श्री& फ्रो& जू& व्लौ& व्री& स्वाहा ॥

३७ब्) नवनवार्णनरमन्त्रत्रयोपासन प्रिया ॥
ऐहलैकिकपारलौकिकादि चतुर्वर्गफलसाधनी महामाया सौम्योग्ररूपा
प्रतिव्यक्ति स्व स्वमनोरथपुरणी ह्म्ज्क्ष्मू& प्रत्यङ्गिरे देवितुभ्यं नमः
फट् स्वाहा ॥
प्रत्यङ्गिरे देवितुभ्यं नमः फट् स्वाहा ॥

३८अ) प्रत्यङ्गिरे देवितुभ्यं नमः फट् स्वाहा ॥
इति श्रीकालानलतन्त्रे सिद्धिलक्ष्म्यायुताक्षरमालामन्त्रः समाप्तम् ॥