सम्भाषणम्:रामायणम्/युद्धकाण्डम्/सर्गः ९५
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अस्मिन् पृष्ठे बृहद् दोषः वर्तते । अत्र लिखितः सर्गः 95 न अपि तु 94 अस्ति । अर्थात् इतः आरम्भ सम्पूर्णे वाल्मीकीरामायणे दोषाचरणम् अभवत् । प्रमाणम् - 1, वाल्मीकीरामायण, गीताप्रेस गोरखपुर, ISBN-81-293-0016-8
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