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सम्भाषणम्:घेरण्डसंहिता/षष्ठोध्यायः

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विषयः योज्यताम्
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नमस्कार

जो आपने यह कार्य किया है बेहद सराहनीय है परन्तु जब मैंने इसे विस्तार से अध्ययन कर रहा था तो कुछ श्लोकों में उलझन दिखाई दी जैसे महामुद्रा के लाभ की बात करें तो श्लोक में वलितं पलितं नन्ही दिखाई देता और

समाधि की जब बात करते हैं तो छः समाधियों के लाभ भी अलग अलग दिखाई देते हैं मतलब समाधि का श्लोक अन्य पुस्तको में अन्य तरीके से लिखा गया है

शाम्भव्या चैव भ्रामर्या खेचर्या योनिर्मुद्रया। ध्यानं नादं रसानन्दं लयसिद्धिश्चतुर्विधा ॥५॥ पञ्चधा भक्तियोगेन मनोमूर्च्छा च षड्विधा। षड्विधोऽयं राजयोगः प्रत्येकमवधारयेत् ॥६॥ यह श्लोक स्वामी निरंजनानन्द सरस्वती (योग पब्लिकेशन ट्रस्ट) द्वारा लिखा गया है जिसमें खेचरी से रसानन्द समाधि बताई है तथा भ्रामरी से नादयोग समाधि होना बताया गया है |

परन्तु आपके द्वारा बताये गये श्लोक में यह विपरीत दिखलाई देता है आपके कार्य की सराहना करते हुए मैं यह जानने की जिज्ञासा रखता हूँ की वास्तव में सही श्लोक कौन सा है ?


आपके जवाब का इन्तजार करूंगा अमनदीप Adsl125050@gmail.com

धन्यवाद |

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