षट्पदीस्तोत्रम्
दिखावट
षट्पदीस्तोत्रम् शङ्कराचार्यः १९१० |
॥ श्री ॥
॥ षट्पदीस्तोत्रम् ॥
अविनयमपनय विष्णो
दमय मन शमय विषयमृगतृष्णाम् ।
भूतदया विस्वारय
तारय ससारसागरत ॥१॥
दिव्यधुनीमकरन्दे
परिमलपरिभोगसच्चिदानन्द ।
श्रीपतिपदारविन्दे
भवभयखेदच्छिदे वन्दे ॥२॥
सत्यपि भेदापगमे
नाथ तवाहन मामकीनस्त्वम् ।
सामुद्रो हि तरङ्गं
क्वचन समुद्रो न तारङ्गं ॥३॥
उद्धृतनग नगभिदनुज
धनुजकुलामित्र मित्रशशिदृष्टे ।
दृष्टे भवति प्रभवति
न भवति किं भवतिरस्कार ॥ ४ ॥
मत्स्यादिभिरवतारै-
रवतारवतावता सदा वसुधाम् ।
परमेश्वर परिपाल्यो
भवता भवतापभीतोऽहम् ॥ ५ ॥
दामोदर गुणमन्दिर
सुन्दरवदनारविन्द गोविन्द ।
भवजलधिमथनमन्दर
परम दरमपनय त्व मे ॥ ६ ॥
नारायण करुणामय
शरण करवाणि तावकौ चरणौ ।
इति षट्पदी मदीये
वदनसरोजे सदा वसतु ॥ ७ ॥
इति षट्पदीस्तोत्र सपूर्णम् ॥