बालकाण्ड १२
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१९० ॥ नौमी तिथि मधु मास पुनीता । सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता ॥ मध्यदिवस अति सीत न घामा । पावन काल लोक बिश्रामा ॥ सीतल मंद सुरभि बह बाऊ । हरषित सुर संतन मन चाऊ ॥ बन कुसुमित गिरिगन मनिआरा । स्त्रवहिं सकल सरिताऽमृतधारा ॥ सो अवसर बिरंचि जब जाना । चले सकल सुर साजि बिमाना ॥ गगन बिमल सकुल सुर जूथा । गावहिं गुन गंधर्ब बरूथा ॥ बरषहिं सुमन सुअंजलि साजी । गहगहि गगन दुंदुभी बाजी ॥ अस्तुति करहिं नाग मुनि देवा । बहुबिधि लावहिं निज निज सेवा ॥ दो॰ सुर समूह बिनती करि पहुँचे निज निज धाम । जगनिवास प्रभु प्रगटे अखिल लोक बिश्राम ॥ १९१ ॥ छं॰ भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी । हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ॥ लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी । भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी ॥ कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता । माया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता ॥ करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता । सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंता ॥ ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै । मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर पति थिर न रहै ॥ उपजा जब ग्याना प्रभु मुसकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै । कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥ माता पुनि बोली सो मति डौली तजहु तात यह रूपा । कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ॥ सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा । यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं भवकूपा ॥ दो॰ बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार । निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार ॥