पृष्ठम्:Rig Veda, Sanskrit, vol8.djvu/५७३

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कार्यः ८, २,४०० ५,७५, ७. अस्मद् - बासू ६,५५,१ अ][][]- १०,२७, एतन् गुरु- नाव- वा: ९,४५,५ सुप्रभै| स्वयं] - न्येँ इति सुश्रयं १,९५,१. ता- श्रीयमाणा- अ॒ग्निमुन्धः धर्म - अ॒दन्- अप्रतम् मद्रा- भुद्धि, रा अर्जुटा- विधि प व्यथा - यः या श पदानुक्रमणिकायाम् परिवर्धनानि शोधाश्च कार्य- अनुनपरा- निमित् एवम् अफ का- शक्षित- कप्र- समेऽभइन्- अमृत [३] अ॒स्त्वा॒स]- -पत॑म् अ॒कुद मन्त॑म् मच्छिंद्र- (क) परिवर्धनानि क्षीयमाण- अ॒ग्न॒म्न्ध- -न्धः शुजर- सट- य (ख) शोधा: " एतत् कार्तिस्थिय "ष्टि । ये, यो ई- कथा-प भनमध्रप- अनिमित्र- सु॒ऽपि [स्व॒पि] - पिभि८,५३,५, सुआपी ४,४१.७० सु॒ऽआ॒स॒स्थव॒ा”]- नथे इ१०, स्ने॒हप॑त् ९,९५, ५४. पा नेटः अनिमेव- नाममा- अन्र्त, सा- ठो- कर्मयुरचन्- शुभआरम् +य] अ॒भियज॑त् अ॒भिशस्ति- अर्य-यो अयंस - ८२,४०, सः अयाँ थुंडा ५, ७५, ७, २,११,१५ अ॒होः ६ ६७,११, ७,३७, ४१०,३३०.५. अ॒स्मद् म् १.७.४, १७८२ "फिसु यथा- हंशान, जा- एवम् अनिमेष- अनुश्काम अमृत- मन्त अप्रैऽयुश्वन- अ॒भि॒भार॑म् भ्या"] अ॒भि॒श्वत्- अभिशस्तुिउदा- अर्थ यो १३ अर्थ-पैस अमां- अयु १,११,५ x x ●भाग- आय- ग्राम-