२७२ Sutra आश्वलायनगृह्यसूत्रभाष्यम् Chap. Page Section and No. दक्षिणम ब्राह्मणाय 1. 24. 11 130 दक्षिणाग्निश्चेत् पूर्वं 4.4.4. 236 [दक्षिणाप्रवणं प्राग्दक्षिणा ] 4.1.8 224 दक्षिणाप्रवणेऽग्निम् 2. 5. 3 159 दक्षिणा प्रवणे सभां 2.7.10 174 दक्षिणे केशपक्षे त्रीणि 1. 17. 8 91 दक्षिणेन वा सव्योपगृहीतेन 4.7.12 251 दक्षिणे पार्श्वे स्फयं 4. 3. 4 231 दक्षिणे हस्ते जुहूम् 4. 3. 2 दधनि मध्वानीय I.24.5 128 दधन्यत्र सर्पिरानयन्ति 4. 1. 19 226 दधिमधुघृत मिश्रम 1.16.5 88 दर्भान् द्विगुणभुग्नान् 4.7.8 250 दशाहं सपिण्डेषु 4.4.16 .238 दुर्ज्ञेयानि लक्षणानि देवताश्चोपांशुयाज' देवतास्तर्पयति देवयज्ञो भूतयज्ञः ' देवस्य त्वा सवितः 1. 5. 4-5 30 " 1. 10.4 54 3. 4. 1 191 3. 1. 2 184 3 1.24. 15 131 ! • देवानां प्रतिष्ठे स्थः ' 3. 8. 19 211 द्वादशतं वा महा द्वादशवर्षाणि वेदब्रह्मचर्यं द्वादशे वैश्यम् द्वयक्षरं प्रतिष्ठाकाम: 4.4. 15 238 1. 22. 2 109 1.19.4 99 1. 15. 7 84 ! धनुर्हस्तादाददानः धनुश्च क्षत्रियाय ध 4.2.21 230 4.2.18 229
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