पृष्ठम्:AshtavakraGitaWithHindiTranslation1911KhemrajPublishers.djvu/१९१

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

भाषाटीकासहिता। १७९ सुख आठ श्लोकोंकरके वर्णन करते हैं। हे गुरो! आपसे तत्वज्ञानरूप सांडसीको लेकर अपने हृदयमेंसे नाना प्रकारके संकल्पविकल्परूप कांटेको दूर कर दिया ॥१॥ कधर्मःकच वा कामः क चार्थः क विवेकिता। कद्वैतंक च वाद्वैतं खमहिनि स्थितस्य मे॥२॥ अन्वयः-स्वमहिम्नि स्थितस्य से धमः क, वा कामः च क; अर्थः क; विवकिता च का द्वैतम् क; वा अद्वैतम् च के ॥ २॥ हेगुरो ! धर्म अर्थ काम मोक्ष इन चारोंका फल तुच्छ है, इस कारण तिन धर्मादिरूप कांटेको दूर करके आत्मस्वरूपके विषे स्थितिको प्राप्त हुआ जो मैं तिस मुझे द्वैत नहीं भासता है, इस कारणही मुझे अद्वैत- विचारभी नहीं करना पडता है, क्योंकि “ उत्तीर्णे तु परे पारे नोकायाः किं प्रयोजनम् " जब परली पार उतर गये तो फिर नौकाकी क्या आवश्यकता है ? इस कारण जब द्वैतका भानही नहीं है तो फिर अद्वैत विचार करनेसे फलही क्या ? ॥२॥ क भूतं व भविष्यद्वा वर्तमानमपि क वा ।क देशःव चवा नित्यं स्वम- हिनि स्थितस्य मे ॥३॥