पृष्ठम्:AshtavakraGitaWithHindiTranslation1911KhemrajPublishers.djvu/१७

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भाषाटीकासहिता। ५

निर्विकल्पक समाधि कहा है, उस निर्विकल्पक समा- धिकी स्थितिके अर्थ क्षमा ( सब सह लेना ), आर्जव ( अविद्यारूप दोषसे निवृत्ति रखना ), दया (विना कारणही पराया दुःख दूर करनेकी इच्छा), तोष ( सदा संतुष्ट रहना), सत्य (त्रिकालमें एकरूपता) इन पांच सात्विक गुणोंका सेवन करे। जिस प्रकार कोई पुरुष अमृततुल्य औषधि सेवन करे और उस औषधिके प्रभावसे उसके संपूर्ण रोग दूर हो जाते हैं, उसी प्रकार जो पुरुष अमृततुल्य इन पांच गुणोंको सेवन करता है, उसके जन्ममृत्युरूप रोग दूर हो जाते हैं अर्थात इस संसारके विषयमें जिस पुरुषको मुक्तिकी इच्छा होय वह विषयोंका त्याग कर देवे, विषयोंका त्याग करे विना मुक्ति कदापि नहीं होती है, मुक्ति अनेक दुःखोंकी दूर करनेवाली और परमानंदकी देनेवाली है इस प्रकार अष्टावक्रमुनिने प्रथम शिष्यको विषयोंको त्यागनेका उपदेश दिया ॥२॥

न पृथ्वी न जलं नाग्निर्न वायुर्द्यौर्न वा भवान् । एषां साक्षिणमात्मानं चिद्रूपं विद्धि मुक्तये३॥

अन्वयः-(हे शिष्य !) भवान् पृथ्वी न । जलम् न। अग्निः न । वायुः न । वा द्यौः न । एषाम् साक्षिणम् चिद्रूपम् आत्मानम् मुक्तये विद्धि ॥३॥