पृष्ठम्:AshtavakraGitaWithHindiTranslation1911KhemrajPublishers.djvu/१३५

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भाषाटीकासहिता । १२३

असमाधान, हित और अहितकी कल्पनाको नहीं जानता है, क्योंकि उसका मन ब्रह्माकार हो जाता है ॥ १८॥

निर्ममो निरहंकारो न किञ्चिदिति निश्चितः।

अन्तर्गलितसर्वाशः कुर्वनपि करोति न॥१९॥

अन्वयः-निर्ममः निरहङ्कारः किञ्चित् न इति निश्चितः अन्तर्ग: लितसर्वाशः कुर्वन् अपि न करोति ॥ १९ ॥

जिसकी स्त्रीपुत्रादिके विषं ममता दूर हो गई है और जिसका देहाभिमान दूर हो गया है तथा ब्रह्मसे अन्य द्वितीय कोई वस्तु नहीं है ऐसा जिसे निश्चय हो गया है और जिसकी भीतरकी आशा नष्ट हो गई है ऐसा ज्ञानी पुरुष विषयभोग करता हुआभी नहीं करता है अर्थात् उसमें आसक्ति नहीं करता है ॥ १९॥

मनःप्रकाशसंमोहस्वप्नजाड्यविवर्जितः।

दशां कामपि सम्प्राप्तो भवेदलितमानसः ॥२०॥

अन्वयः-मनःप्रकाशसंमोहस्वमजाडयविवर्जितः । गलितमानसः काम अपि दशाम् सम्प्राप्तः भवेत् ॥ २० ॥

जिसके मनके विर्षे मोह नहीं है ऐसा जो ज्ञानी पुरुष है उसके मनका प्रकाश तथा अज्ञानरूपी जडत्व निवृत्त हो जाता है तिस ज्ञानीकी कोई अनिर्वचनीय