पृष्ठम्:Advaita Siddhi with Guru Chandrika vyakhya.djvu/१२०४

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सं. 1 2 1 पु. 307 सृण्येव जर्भरी - ऋ. सं. 8-6-2 262 सृष्टिस्थिति–सं. शा. 1-260 309 सृष्टीरूपदधाति तै. सं. 5-3-4 सेतुं दृष्टा समुद्रस्य ? सेयं देवतैक्षत-छा. 6-3-2 सेयं माया - भाग. 3-7-9 सैव हि सत्यादयः - ब्र. सू. 3-3-38 सोऽकामयत - तै. 2-6-2 1 103 398 1 2 309 3 2 3 1 1 2 294 1 320 1 124 1 305 स्तेनं मनः ? 1 191 स्वच्छेऽन्तःकरणे ? 2 95 स्वतोऽसिद्धे बृ. वार्तिकम्. 4-3-162 66 84 237 66 299 -:374 सोहंकार - मोक्षधर्म 349-30 सोमारौद्रं चरुम् - तै. सं. 2-2-10 सोमेन यजेत-श्रौ. सू. 8-21-2 सोऽयं सत्यो ह्यनादिश्च ? सोऽरोदीत - तै. सं. 1-5-1 सौगतब्रह्मवादिनो-खण्डन. 1-7-6 2 95 स्वतः सिद्धोऽथवा सिद्धः - बृ. वार्तिकम् 4-3-160 2 292 स्वप्नमायास्वरूपेति-गौ. का. 1-7 2 269 स्वप्नान्तं जागरितान्तं च - कठ. 2-1-4 स्वप्नेन शारीरम्-बृ. 1-3-11 2 144 1 500 2 294 2 127 2 278 2 352 स्वप्नघसाम्यतः -- शा. द 2-2-5 स्वप्रमायागन्धर्व - गौ. सू. 4-2-31 स्वप्रकाशमहानन्दम् – नृ. उ. ता. स्वमपतो भवति – छा. 6-8-1 स्वर्गकामो यजेत--तै. सं. 2-5-5 स्वरूपतः प्रमाणैर्वा - चित्सुखी. 4-4 22 2 305 स्वात्मबन्धहरः सर्वदा नृ. उ. ता 2 8 खण्ड