पृष्ठम्:Advaita Siddhi with Guru Chandrika vyakhya.djvu/११७४

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सं. 1 2 पु. 179 226 2 226 2 :344 2 427 486 1 2 325 1 1 2 2 3 1 1 1 1 1 269 190 305 229 6.3 398 -275 2 132 1 306 1 1 1 207 एवमीश्वरे जीवे च – ( पदार्थखण्डनटीका) एवमेकत्र चत्वारः - तन्त्र. वा. एवमेषोऽष्टदोषोऽपि-तन्त्र. वा. (90 पुट) (90 पुट) एवमेवैतच्छेते - बृ. 2-1-19 एवमेवैषा माया – नृ. उ. ता. 9 खण्ड. एवमेवास्मादात्मनः --- बृ. 2-1-20 एवं ज्ञाते तु भगवान् - वि. पु. 2-19-49 एवं विदित्वा परमात्मरूपं–कै. एवं सौम्य स आदेशो भवति - छा. 6-1-6 एष त आत्मा–बृ. 3-7-3 एष एव परम आनन्दः - बृ. एष तु वा अतिवदति - छा. एष लोकपालः - कौष्ठीतकिब्राह्मणोपनिषत् 3-9 एष सेतुर्विधरण - बृ. 1-1--22 1-3--3 7-16-1 पे 455 ऐतदात्म्यमिदं सर्व-छा. 6-8-7 265 पन्ध्रा गार्हपत्यं ? 461 ऐरं कृत्वोद्गेयं – ताण्डव ब्राह्मणम् 8-6-10 ओ आंषधिवनस्पतयः ? ओषधे त्रायस्वैनम् - नै सं. 1-3-1 454 295 औदुम्बरी सर्वा - ? ·295 औदुम्बरी स्पृष्टा ? 2 39 कथमसतः सज्जायेत- -DI. 6-2-2 औ औत्पत्तिकस्तु-जै. सू. 1-1-5