जगत् की उत्पत्ति स्थिति और लय जिससे मायाद्वारा होता है, जो केवल शास्त्र प्रमाण से ही जाना जाता है, जो सर्वज्ञ है, जो सहज सुखरूप है, जो अद्वैत ज्ञान स्वरूप है, जो स्वप्रकाश है, तथा वेदान्त वाक्यों में जिसका मुख्य लक्ष्य किया गया है, वह ब्रह्म है और वही श्रात्मा है । उसको जानकर महात्मा जन्म मरणस्प समुद्र से इसी जन्म में तैर जाते हैं ॥१५॥
(जगताम्) सर्व काय की (उत्पत्ति गुप्ती) उत्पत्ति श्रौर पालन (अपि) तथा (चक्षतिः ) नाश (मायया ) माया से ( यस्मात्) जिस मायाशबल ब्रह्मसे होते हैं और (यत् मायया शास्त्रैक योनि: ) जो ब्रह्म माया के सहित होने से केवल शास्त्र प्रमाण से ही जाना जाता है, ( सर्वोज्ञम्) जो ब्रह्म सर्वज्ञ है अर्थात् सामान्य तथा विशेष रूप से सर्व को जानने वाला है, (यत् सड्ज सुख) जो ब्रह्म स्वभाव भूत सुख स्वरूप है, (सदद्वैत मंवित्स्वरूपम्) जो ब्रह्म नित्यद्वैत संबन्ध से रहित और ज्ञान स्वरुप है, ( तत् ब्रह्म ) जो ब्रह्म तत्त्वमसिआदि वैदिक महावाक्योंमें तत् पद्से कहा गया है, ( स्वप्रकाशम्) जो ब्रह्म स्वयं प्रकाश रूप है तथा (श्रति शिखर गिराम्) सर्व वेदांत वाक्यों के (सा एव तात्पर्य भूमि:) तात्पर्य का जो एक मात्र लक्ष्य है (असौ ) सो यह ब्रह्म ही (स्वात्मा) अपना स्वरूप है. (यम्) जिस ब्रह्म रूप निज आत्माको (विदित्वा ) जान करके ( सन्तः) ब्रह्मवेत्ता महात्मा लोग (जनिमृति जलधिं ) जन्म मरण रूप समुद्र को (इह) इसी जन्म में ( निस्तरंति ) नितरां तर जाते हैं ।१५।।