२३२ ] स्वाराज्य सिद्धि बाधितं स्यादसद्ध्वस्त वैधम्र्यतो मोह बाधो पि न ध्वंस रूपो परः । बाध बुद्धिश्च नाभाव मात्र प्रथास्यादभावोऽप्यधिष्ठान रूपोऽथवा ।।१५ बाधित वस्तु श्रसत् है, नाश विधर्मयुक्त है, मोहबाध ध्वंसाभाव स्प नहीं है, अपर है और अत्यन्ताभाव मात्र स्प भी बाधबुद्धि नहीं है। अथवा अभाव भी अधिष्ठान रूप ही है । (इससे अज्ञान फिर नहीं होता ) ॥१५॥ (बाधितं असत् स्यात्) बाधित वस्तु असत् है, (ध्वस्त वैधम्र्यतः) क्योंकि नाश हुआ कार्य संस्कार रूपसे अपने कारण में तिरोभूत हो करके सदा ही रहता है परन्तु बाधित हुआ. असत् मिथ्या पदार्थ वैसे नहीं रहता ! इस प्रकार नाश हुए पदार्थ की और बाधित पदार्थ की विधमता है । (मोह बाधः अपि न ध्वंसरूप अपरः) मोह अथात् अज्ञान का बाध भी ध्वंसाभाव रूप नहीं है अत: अपने अधिष्ठानसे भिन्ननहीं है, क्योंकि कल्पित पदार्थ का अभाव अधिष्ठान से भिन्न नहीं होता । बाध. त्रैकालिकः विषय होता है अर्थात् बाध किया हुआ पदार्थ न पहले था और न अब है और न श्रागे होवेगा इस प्रकार कल्पित पदार्थ के त्रिकालाभाव निश्चय का नाम बाध है, परन्तु ध्वंसाभाव वर्त मान कालिक होता है, अतः बाध' ध वंसाभाव से पृथक् है और विचारकर देखा जावे तो सादि अनंत लक्षण वाला प्रध्वंसाभाव ही श्रसिद्ध है, क्योंकि प्रभाव के साथ कारक सामग्री का संसर्ग श्रसंभव है। अन्य के संसर्ग से अन्य की उत्पत्ति कहना अति प्रसंग से दूषित है। अथवा, जैसे पर मत वालों ने ध्वंस को
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