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पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/२३

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प्रकरणं १ श्लो० 9

समुचय पक्ष भी असंभव है क्योंकि ज्ञान और कर्म के साधन, स्वरूप तथा फल इनका प्रकाशतम के सदृश विरोध है ।

शंका-यदि कर्म वा उपासना मोक्ष के कारण नहीं हैतीशास्त्र उनको मोक्ष का कारण क्यों बताता ?

समाधान– ज्ञान प्रविक्षिप्त शुद्ध अन्तःकरण में होता है, विक्षेप और पापरूप मल की निवृत्ति कर्म और उपासना से ही होती है, इस प्रकार परंपरा से कर्म उपासना मोच के कारण है, यह शास्र का तात्पर्य है ॥८॥

नित्य नैमित्तिक कम को श्रति वाक्य बल से फलांतरों की कारणता होने पर भी मोक्ष की साक्षात् कारणता नहीं हैं, इस बात को अब बतलाया जाता है।

पेत्रो लोकोऽधिगम्यः क्रतुभिरधिगतो विद्यया
देवलोको यद्वा चेतः कषायचपणमिह लयोः
स्मार्तमेवास्तु साध्यम् । यज्ञेनेत्यादि वाक्या
द्भवतु विविदिषा वेदनं तत्फलं वा ज्ञानादेवामृ
तत्वं नहि शशक वधुः सिंह पोतं प्रसूत॥९॥

नित्य नैमित्तिक कर्म करने से पितृलोक की प्राप्ति होती है और उपासना से देवलोक की प्राप्ति होती है । अथवा कर्म और उपासना का कषाय पकहोने स्वप फल से अन्तःकरण के मलदोष की निवृत्ति होती है, अथवा यज्ञ दान से ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा होती है और ज्ञान