शब्द से अपरोक्ष ही ज्ञान होता है इसमें और श्रुतेि भी प्रमाण हैं यह दिखलाते हैं
विदधाति यचपरमात्म दृष्टये श्रवणं विमृष्ट
निगमान्त गोचरम् । श्रुति मात्र तीणं तमसो
यदबुवन् जनकोसि तारयसि पारमित्यपि ॥६॥
और परमात्मा के साक्षात्कार के लिये श्रुति वेदान्त श्रवण का विधान करती है, श्रवण मात्र से अज्ञान नष्ट होने का कथन करती हैं, जैसे कि हे भगवन, श्राप पिता हैं हमको संसार समुद्रसेआपने पार किया हें '.॥६॥
(च) और ‘आत्मा वारे द्रष्टव्यः’ यह वृहदारण्यकोपनिषत् की श्रुति भो (परमात्मष्टये ). परमात्मा के साक्षात्कार -के लिये (विमृष्ट निगमांतगोचरं श्रवणं विदधाति ) विचारित वेदान्त के श्रवण का विधान करती है। (यत्) ब्रह्मा का शब्द से अपरोक्ष ज्ञान ही होता है यह बात (श्र ति मात्र तीर्णतमसः) श्रवण मात्र से अर्थात् निगमांत के उपदेश मात्र से नष्ट श्रज्ञान हुए सुकेश सत्य काम आदिक शिष्यों ने (यत् अञ्चुवन्) प्रश्नो पनिषत् के अन्त में जो यह कहा है कि ‘जनकोऽसि तारयसि पारं इति अपि' हे भगवन् आप हमारे पिता हैं आपने हम लोगों को अविद्या समुद्र का पाररूप जो अपुनरावृत्ति लक्षण स्वस्थ ब्रह्म रूप मोक्ष है उसको प्राप्त कराया है अर्थात् जब पिप्पलाद’ महा राज ने यह कहा कि यह ब्रह्म तत्व का उपदेश मैंने तुम लोगों से किया है वह इतना ही है, इससे आगे अब और अर्थ ज्ञातव्य