पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/२२२

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स्वाराज्य सिद्

(शब्दजापि श्रखंडधी:) तत्त्वससि महा वाक्य रूप शब्द से उत्पन्न हुआ अखंडाकारवृत्ति रूप ज्ञान (इति श्रपरोक्ष वस्तु विषया) स्वयं प्रकाश और नित्यापरोक्ष रूप आत्म वस्तु विषयक होने से (अपरोक्षतां न विजहाति) अपनी अपरोक्षता को नहीं छोड़ता । भाव यह है कि अपरोक्ष वस्तु विषय का ज्ञान भी अपरोक्ष ही होता है परोक्ष नहीं, (हि) क्योंकि (दशमस्त्वं इति श्रदो वचनं निपुणं निशम्य स्वं उपलब्धु नहि इच्छति ) दसवां तू है, इस प्रकार दयालु पथिक ब्राह्मण के वचन को जैसे है तैसे ही सम्यक् सुन कर फिर वह अपने जानने की इच्छा नहीं करता, भाव यह है कि यदि शब्द से परोक्ष ही ज्ञान होता तो दसवां पुरुष फिर अपने को अपरोक्त जानने के अर्थ उपाय में प्रवृत्त होता, परंतु होता नहीं । इसलिये शब्द से अपरोक्ष ज्ञान ही होता है यह स्पष्ट है, परंतु जहां विषय ही परोक्ष है वहाँ शब्द से परोक्ष ज्ञान ही होता है।
दशम की कथा इस प्रकार है-दस पुरुष किसी कार्य के लिये जा रहे थे । रास्ते में एक नदी पड़ी, तब वे दसों पुरुष तैर कर नदी के पार चले गये । अब उन्होंने विचारा कि हम दस ही हें कोई डूबा तो नहीं ! तब उनमें से एक पुरुषने श्रपने को न गिन कर और नौ की गिनती की और कहा कि भाईओो दसवां पुरुप नदी में बह गया है ! उनमें से श्रौरों ने भी गिना परन्तु, सभी अपने को गिनना भूल जाते थे । अंतमें सभी को निश्चय हुआ कि उनमें से एक नदी में ही रह गया है । इसलिये वे सब रोने लगे । दैववशात् वहां एकपथिक आ पहुंचा । उस पथिकने पूछाकि तुम लोग क्यों रुदन करते हो ? तब उन्होंने कहा, हम घर से दस चले थे । नदी पार करते हुए हममें से एक नदी में बह गया है।