पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/१७२

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स्वाराज्य सिद्धिः

समा दृग् दृशेगोचरो वा यच्चासौ निविकारस्तदय

मनवधि: प्रत्यगात्मा सदात्मा ||३३॥ ।

जाग्रत अवस्था का बाध होने पर स्वप्न पदार्थ के साथ द्रष्टा का बाध नहीं होता । बाधका द्रष्टा साक्षी आत्मा अपना बाध किस प्रकार जान सकता है ? द्रष्टा से भिन्न अन्य द्रष्टा में कोई प्रमाण नहीं है और साक्षी द्रष्टा अन्य द्रष्टा का बिषय नहीं होता, इसलिये सब निर्विकार है, प्रत्यगात्मा . सदात्मा अपरिच्छिन्न है ॥३३॥

( यत् वाध्य मानैः स्वाप्नाथैः सह अयं बाधद्रष्टा बाध्यमानो न दृष्टः ) जाग्रत अवस्था में बाध होने वाले स्वप्नमें होने वाले गज, तुरंगा, रथ आदिके पदार्थों के साथ ही प्रत्यक्षरूप बाध के द्रष्टा प्रत्यगात्मा का बाध होते नहीं देखा गया है, इसलिये श्रात्मा सत्य है । ( स्वयं बाधद्रष्टा सन् छगात्मा श्रात्मबाधं कथमिव कलयेत्) स्वयं बाध का द्रष्टा सत् रूप और साक्षी ऐसा आत्मा अपने ही बाध को कैसे जान सकता है ? नहीं जान सकता, क्योंकि अपने बाध को कोई भी प्रत्यक्ष नहीं कर सकता । श्रन्यथा व्याघात प्राप्त हागा, श्रतः श्रात्म सत् रूप ह । (यन् दृग्भेदे मानमपि न ) द्रष्टारूप प्रकृतात्मा से भिन्न और द्रष्टा के होने में कोई प्रमाण भी नहीं है। उलटा ( नातोऽन्य दृस्ति द्रष्टा ) इत्यादिक प्रमाण आत्मा से भिन्न द्रष्टा का निषेध ही करते हैं। इसलिये श्रात्मा के बाध को अन्य भी कोई प्रत्यक्ष नहीं कर सकता, श्रतः यह श्रात्मा सत् रूप है । (समा _ _