पृष्ठम्:स्फुटचन्द्राप्तिः.djvu/५०

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106. 107 . 108. 109 . 110. 11. 112. 113. 114. 115. 116. 117. 118. 119. 120 . 121. 122. 123 . 124 . 125. 126. 127 . 128. 129. क्रीडा दृढा नरनार्यो : विश्वं गोपाल एकाकी ' फलाहारो मूख्यकल्प : धन्वी झाली सुरैः पूज्य : गोमदो गळी धनुज्य विपाठा आढच्य: षड्भागैर्तृपः धन्यः* स्थाणुमुपेयात् धिगसौख्यं हिरण्यात् देवो धावन्नैकत्र तन्वी शीलगरिष्ठा लक्ष्मीस्तुङ्गस्तनाङ्गी चला लक्ष्मीर्धन्यगा धिगशीघ्रगा नाव : पूर्णः पयसा कुम्भः कठिनोऽयं कीनाशा: धिगहंयुमकस्मात् षड्भागबन्धुरोश कठोरो मृगपतिः क्षीणो न व्याहरति धर्मशास्त्रं श्रेयसे लोकोऽभिलाषी रसे6 सागरो गोर्न पदम् रविजुष्टं वारिजे' 1. D. विभुगपालनायकः 3. B. विपरी 5. B. धीमान् मुरारिव्यास 7. B. रविजो युवराज R 10 11 11 11 1 1 2 3 5 6 8 20 15 27 21 3 15 28 10 23 19 17 3 29 13 28 12 26 4. 10 24 6. 48 13 28 35 38 41 46 57 17 49 35 36 53 25 18 33 52 10 25 34 32 18 B. धन्या B. लाषिरसौ 32 44 32 49 53 10 19 39 48 46 53 36 39 51 21 39 46 21 56 59 13 37 42 5 1