पृष्ठम्:सिद्धान्तशिरोमणिः.djvu/22

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

( १४ ) इस शास्त्र के मुख्य तीन विभागों का परिचय नारद ऋषि के वचन से उपलब्ध होता है। उनका वचन “सिद्धान्तसंहिताहोरारूपस्कन्धत्रयात्मकम् । वेदस्य निर्मलं चक्षुज्योंतिश्शास्त्रमनुत्तमम्” ॥* इससे सिद्ध होता है कि सिद्धान्त, संहिता व होरा ये तीन मुख्य भाग हैं। प्रस्तुत ग्रन्य नाम से ही सिद्धान्त ग्रन्थ होना बताता है। अत: चिन्ता होती है कि सिद्धान्त नाम से किस शास्त्र का ज्ञान होता है। इसके उत्तर में निम्न प्रमाण उपलब्ध होते हैं । ‘सिद्धान्त शब्द गणितपद वाचक है, ऐसा कथन गणेशदैवज्ञ का केशवकृतमुहूर्ततत्व की टीका में मिलता है।” तथा [ वासना वातिक में नृसिंहदैवज्ञ ने कहा है कि सडूचा की या गिनने की विधि जिस शास्त्र में हो वह गणित शास्त्र कहलाता है। वह गणित भी चार प्रकार का होता है। १ जिसमें स्पष्ट सर्वजन प्रसिद्ध जोड़ने, घटाने, गुनने व भागादि की विधि १, २, ३ आदि अड्रों द्वारा हो, वह व्यतगणित होता है। २ जिसमें । अभीष्ट सिद्धि के लिये यावत्, तावत्, कालक आदि की सापेक्ष्यबुद्धि से क्रियां होती है, उसे अव्यक्त गणित कहते हैं। ३ जहाँ पर फलादि संस्कारों द्वारा ग्रहमिति का ज्ञान होता है वह ग्रहगणित और ४ वेधादि से ग्रहकर्म वासना अर्थात् युक्ति युत कर्मों की गणना हो वह गोलगणित होता है, क्योंकि वेध गोल के आश्रित होते हैं। इस लिये उत्त चार प्रकार की गणित जिस में हो वह गणित होता है, तथा वही सिद्धान्त भी कहलाता है। कहा है कि- . . . . . व्यक्ताव्यक्तभगोलवासनमयः सिद्धान्तः अादि इति ] . . . → व्यताव्यतादि की सोपपतिक चर्चा जिसमें हो वह सिद्धान्त नाम से प्रसिद्ध अन्य आचार्यों का कहना है कि जिसमें कल्पादि से ग्रहों का आनयन होता है, वह सिद्धान्त नाम वाला होता है। .....? अथवा जिसमें युग, वर्ष, अयन, ऋतु, मास, पक्ष, अहोरात्र, याम,- मुहूर्तं, नाड़ी, विनाड़ी, प्राण, त्र्युट्यादिकों का तथा सौर, चान्द्र, सावनादि मासों का विचार, उपलब्ध हो वह सिद्धान्त ग्रन्थ कहलाता है। · · · . . . . १. मु. चि. १ अ. २ श्लो. पीयू टी.। २. सि० शि0 ९ पृ० ।