पृष्ठम्:सिद्धसिद्धान्तपद्धतिः अन्ये च.djvu/१४४

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शिष्य उदयनाथ श्री आदिनाथ तै जोग शास्त्र प्रगट कियौ द्वहै । योग कौ उदय जाकर महासिद्ध निकरि बहुत भयो आठं उदयनाथ नाम प्रसिद्ध भयो । अनन्तर दण्डनाथ ताही जोग के उपदेश तै खण्डन कियो है। काल दण्डलोकनि कौ य्यातै दण्डनाथ भयौ।।

आगे मत्स्यनाथ असत्य माया स्वरूपमय काल ताको खंडन कर महासत्य हैं शोभत भयौ आण निर्गुणातीत ब्रह्मलनाथ ताञ् जातैयातै आदि ब्राह्मण समवेदी। ब्राह्मण वेद पाठी होतु है ऋण यजु साम इत्यादि कर इनकै सूक्ष्म वेद कहियै । प्रणवकार वेद आतै मूक्ष्म वेदी खेचरी मुद्रा अन्तरीय खेचरी मुद्रा बाह्यवेषरी कर्ण मुद्रा मुद्राशक्ति की निशक्ति करबी सिद्धसिद्धान्त पद्धति के लेख प्रमाण । अनन्त मठ मन्दिर शिव शक्ति नाथ अरु ईच्छा शिव तन्तुरियं जज्ञोपवीत शिव तं तु आत्मा तंतु जज्ञ जोग जग्य उपवीत शयाम उमामत्र । ब्रह्म पदाचरणं ब्रह्मचर्य शान्ति संग्रहणं गृहस्थाश्रमं अध्यात्म वासं वानप्रस्थं स सर्वेच्छा विन्यासं संन्यासं आदि ब्राह्मण कहि मै चतुर वर्ण कौ गुरु भयौ अरु इह च्यारों आश्रम की समावेस जामै होय है ख्यातै ही अत्याश्रमी आश्रमन कोहु गुरु भयौ । सो विशेष करि शिष्य पद्धति में कहो ही है । तात्पर्य भेदाभेद रहित अचिन्त्य वासना जुक्त जीव होय ते तौ कुल मार्ग करियौ मैं आवतु है अरु समस्त वासना रहित भए है अंत:करण जिनके, ऐसै जीव जोग भजन मै आवत है ऐसो मार्गन मै अकुल मार्ग है । और शास्त्र वाक जालकर उपदेश करतु है । मैरो संकेत शास्त्र है जो शुन्य कहिये नाथ सोही संकेत है इह मार्ग में देवता कोन हैं यह आशंका वारन कहै है ईश्वर संतान । संतान दोय प्रकार की नाद रूप विन्दु, विन्दु नाद रूप । शिष्य विन्दु रूप, पुत्र नाथ रूपं नाद शक्तिरूप विन्दु नादरूप करि भए । शिष्य सौ प्रथम कहै नवनाथ स्वरूप शक्ति विन्दु रूप पर शिव सोही ईश्वर नाम कर मैरो संतान है । ता करि