पृष्ठम्:सरस्वतीकण्ठाभरणं‌(व्याकरणम्)-भागः-३.pdf/305

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• उक्धलोकायत (4-2-4?) उगीहविर्येहि (4-4-188) उञ्छति (4-4-82) उत्करदाफर (4-3-137) उत्तरपदतिशय (3-3-h?) उतरपदाद(4-8-21) उत्तरपदार्थ (8 8-30) उत्तरादाह (4-3-22) उत्पातेन ज्ञाध्यमाने {3-1-37) sagវិ (4-4+64) उदकात्र्सज्ञायाम (4-3-15 )) उदकूच वि पाश (4-2-102) उदgादिभ्यश्ध (4-1-2 } उदञ्चः संज्ञायाम्(4-1-34) उदश्चरः सकर्मकात् (3-1-101) उदधिती वा (4 2-23) उदस्थानादू {4-1-18) उदीच्यप्रामातू {4 3-28) उदुम्बरः कृमि {3-2-68} उदुस्वरलि (Ꮞ--1- 27Ꮾ) उद्देश्नूर्वेचद्यायां (3 -65) उरदरोदसज (3•2-115} उद्यातोडुगे (s. 2-104) उदिभ्य तप (8-1-74) उन्मृजावमृजने (१-2-117) स्पकलमक { 4 1-192) उपशाखाते {{-3-24) उपज्ञोप कम (8-3-136) उपध. स्वार्धे (4-4-206) SqaqqafÈT (3-2-160) उपपराभ्याम (3-1-S5) उमन्नमुं (3-3 8} उ५मानादेश्व (3-4-100) माननि सामान्य (3-2-81) 항gF. उपमेयानि व्याघ्र (3-2-89) उपसर्गीदजा (3-1-112) उपसर्गदस्यत्यू(3-1-72) उपसर्जनं पूर्व (3 3-58) उपस्चित्ततं (4-4-78) उपात् {3-1-135) उपात् स्थूला (4-8-153) उद्देवपूजा (3-1-60) 42 || उद्देश {4-4-58) 2.4 | उपाद् यमः (8 1-104} 910 | ठसे च (4-8-188) 192 292 2 20 97 26 95 26 90४ | उभयपदार्य (8-3-62) 144 | उभयहेती (8 1-2:5) 烈45 उमोर्णाभ्यां (44-25) 16 उरसोऽण च t}-4-189م( 187 | उरसी यन्ध (4-8-244) 141 || उवर्णान्तानुदात्त (4-4 6) 21 | उष्ट्रद् बुञ् (4 4-24) 65 | उष्णिहो वा (3 4-18) 1፳፰ कककुन्दुमाभ्यां (4-3-80) 10 | छत्रुत: (3-4- I I0) 1 | क्रधसो नश्व (3-4-23) 203 (1-4-185) ऊरेरुपमान (8-4 -114) १ 1 | ऊध्वर्गदिभ्यः (4-8-60) 17; । ऋगयनपद (4-3-186) 257 | ऋचि पादः (3-4-14) 106 | ऋणमधमोत्तमाभ्याम (3-2-62} 298 ऋ६णे पश्चिमी {3 1-228) g1 ! भ्रातभाग (4-1 42) 4 | ऋतgब् (4-8-194} 84 | धातुनक्षत्रेभ्य: (4-3-112} 139 ; श्ऋते द्वितीया (3-1-249) 69 1 ক্ষয়ৰীমন্স (4 4-1048) 6S 18 11 9. 276 24 941 273 7 238 96 267 288 25? 264 26 15 98 133 292 34 222 246 15 63 42 1蛙6 28 23ö 28 ()