पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/९५

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( 55 अरूप ( वि० ) १ रूपरहित २ बदश । कुरूप | 1 थाकारशून्य 1 भैौड़ा| ३ असमान । अस दश। --हार्य, (वि० ) जो सौन्दर्य से आकर्षित या वश नें न किया जा सके। रूपम् ( म० ) १ दशक का | २ सांख्यदर्शन का प्रधान और वेदान्त दर्शन का ब्रह्म । रूपः (50) बौद्ध दर्शनानुसार योगियों की एक भूमि अथवा अवस्था । निर्वीजसमाधि । (वि०) विना रूपक का अन्वर्थं । अविकत । अरे (अव्यया० ) एक सम्बोधनार्थंक अध्यय | ए । यो । जब कोई बड़ा किसी छोटे को सम्बोधन करता है; तब इसका प्रयोग किया जाता है। क्रोधावेश में “अरे" कहा जाता है। "अरे महाराज प्रति कुतः क्षत्रियाः ।" उत्तररामचरित्र | यह अव्यय ईर्ष्याबोधक भी है। 1 अपस् (वि० ) निष्पाप | निष्कलङ्ग २ स्वच्छ निर्मल । पवित्र । अरेरे ( अन्यथा० ) एक सम्बोधनार्थक अन्यय । इसका प्रयोग क्रोध की दशा में या किसी का तिरस्कार करने के लिये किया जाता है। ध्यरोक (वि० ) धुँधला वेचमक का । रोग ( वि० ) नीरोग | रोग से शून्य तंदुरुस्त । | मङ्गयुष्व भवा । चंगा ।-—अरोगः (वि० ) अच्छा स्वस्थ्य अरोगिन अरोग्य } ( बि० ) तंदुरुस्त । भला { चंगा । रोचक (वि० [] [स्त्री० –अरोधिका] १ जो चमक- दार था चमकीला न हो । २ एक रोग विशेष जिसमें अन्न आदि का स्वाद मुँह में नहीं मिलता। ३ अरुचिकर | जो रुचे नहीं । अरोचकः ( पु० ) भूख का नाश या भूख न लगना। घृणा ! अतिषणा अर्क (धा० पु० ) १ उष्य करना : गर्मीना | २ स्तुति करना । अर्क (०) प्रकाश की किरन विजली की चमक या कौंध | २ सूर्य | ३ अग्नि | ४ स्फटिक | ५ तांवा ७ रविवार। ७ अर्क मदार | आ अर्घः | इन्द्र का नाम | १० बारह अश्मन, (१०) - उपलः, ( पु०) इन्दुसङ्गमः ( पु० ) दर्श | अमावास्या | वह समय जब चन्द्र और सूर्य मिलते हैं। -कान्ता, ( स्त्री० ) सूर्यपत्री । --चन्दनः ( पु० ) लाल चंदन 1-जः ( पु० ) कर्ण सुग्रीव और यम की उपाधि । - जौ ( पु० ) देवताओं के चिकित्सक अश्विनीकुमार 1-तनयः ( पु० ) सूर्यपुत्र कर्ण, यम और शनि की उपाधि । --तनया, (स्त्री० ) यमुना और तापती नदियों के नाम 1-विष् (स्त्री०) सूर्य का प्रकाश | --दिनं, (न०) वासरः, (पु० ) रविवार इतवार नन्दनः-पुत्रः सुतः, - सुनु, ( पु०) शनि, कर्ण था यम के नाम | – बन्धुः, बान्धवः (०) कमल 1- मण्डलम् ( न० ) सूर्य का घेरा । - विवाहः ( पु० ) मदार के पेड़ के साथ विवाह । [तीसरा विवाह करने के पूर्व लोग अर्क के पेढ़ से विवाह करते हैं। यथाः - - चतुर्थ दिविषादायें तृतीयेऽकं यमुद्देत् । ) 1 [८] आकन्द की संख्या सूर्यकान्त मणि - काश्यप !] अजः ( पु० ) १ बौदा, बिल्ली, किल्ली, सिट- अर्गला ( श्री० ) (कनी थे किवाड़ बंद करने के काठ अली ( खी० ) के यंत्र हैं । २ लहर | रंग । अर्गलम् (न० ) ३ (पु. ) दुर्गा पाठ के अन्तर्गत एक स्त्रोत्र विशेष । अलिका (स्त्री० ) छोटा बँदा जो किवाड़ों को बंद करने के लिये उनमें अटकाया जाता है। चटखनी। अघू (धा०प० ) [ अति, अर्धित ] दाम लगाना । मोल लेना: पायत्रम सन्ति दे मार्थन्ति र समुद्रशानि सुभाषित | अर्घः ( पु० ) १ मूल्य | दाम क्रीमत । भाव | २ पूजा की सामग्री । पोडशोपचार पूजन में से एक उपचार। इस उपचार में जल, दूध, कुशाप्र दही. सरसों, चावल और यव मिला कर देवता को अर्पण करते हैं। जलदान सामने जल गिराना | - (दि० ) सम्मानसूचक भेंट करने योग्य /-चलावलं ( न० ) भाव | उचित