५४ ) समन्यु -भद्रः, ( पु० ) बुद्धदेव /-भु, ( पु० ) अग्नि । समन्यु ( वि० ) दुःखी २ कोधी । समन्वयः ( पु० ) १ संयोग । मिलन । मिलाप २ विरोध का अभाव २ कार्य कारण का प्रवाह या निर्वाह । ( समभिव्याहारः ( पु० ) एकसाथ वर्णन या कथन | २ साहचर्य अच्छी तरह कहना | समभिसरणं (न०) समीप आगमन २ जिज्ञासु अभिक्षापवान् । समयकार: चलने की क्रिया । -- व्यभिचारः, (पु० ) किसी इकरार या कौलकार को तोड़ना व्यभि चारिन, ( वि० ) कौल करार को भंग करने वाला | समरः ( पु० ) ) - भूमिः, ( 5० ) युद्धक्षेत्र । समन्वित ( ० ० ) संयुक्त | मिला हुआ | | समरं ( न० ) } युद्ध लड़ाई | संग्राम। -उद्देशः २ जिसमें कोई रुकावट न हो । ३ सम्पन्न | अन्वित १४ प्रभावान्वित या प्रभाव पड़ा हुआ। समभिप्लुत ( च० ० ) : जलप्लावित | जना के बड़े में बड़ा हुआ | २ | - शिरस्. ( न० ) सेना का अप्रभाग । समर्चनं (न० ) अर्थन | पुजन | सम्मानकरण | समर्थ (दि० ) पीड़ित | कटित । धायल । २ याचित | माँगा हुआ। समर्थ ( वि० ) १ मजबूत बलवान २ निष्यात | योग्यता सम्पन्न | ३ योग्य ठीक उचित ४ तैयार किया हुआ । २ समानार्थयाची ६ गूढार्थं प्रकाशक । ७ बहुत जोरदार ८ अर्थ से सम्बन्ध रखने वाला। समर्थकं ( न० ) अगर की लकड़ी। सममिहार: ( पु० ) १ एक साथ ग्रहय २ दुइ- राव | पुनरावृत्ति ३ फालतू । अतिरिक्त । समभ्यर्चनं ( न० ) थर्चा सम्मान | पूजन | समभ्याहारः ( पु०) साहचर्य । समया (अव्यया०) समय से । २ निर्दिष्ट समय से। ३ यीच में। भीतर | समर्थनं ( न० ) १ स्थापन | अनुमोदन २ संभा वना | ३ उत्साह | ४ सामर्थ्य | शक्ति | ५ मत भेद दूर करना | भगड़ा मिटाना । समयः (पु० ) १ वक्त काल । २ मौक़ा | अवसर । ३ उचित समय ठीक वक्त | ४ कौल करार | ५ | समर्थक ( वि० ) १ अभीष्ट पूरा करने वाला। पद्धति वरदाता | रीतिरस्म स्वाज़ प्रथा ६ मामूली रीति रस्म | ७ कवियों का निश्रय किया हुआ सिद्धान्त ) म सङ्केत स्थान या कालनिरूपण ६ ठहराव | शर्त । १० कानून | शायदा नियम | ११ आदेश । निर्देश | आज्ञा १२ गुरुतर विषय | नितान्त आवश्यकता १३ शपथ | १४ सङ्केत इशारा । १५ सीमा | हद | १६ सिद्धान्त | सूत्र १७ समाप्ति । अक्सान ८ साफल्य समृद्धि | ५१ दुःख की समाहि । यध्युषितं, ( न० ) यह समय जब न तो सूर्य और न तारा- गए दिखलाई पर्ने ।-अनुवर्तिन, (वि० ) किसी प्रतिष्ठित पद्धति पर चलने वाला - आचार: ( ० ) पति | रीतिरस्म ।-क्रिया, (स्त्री०) कौल फरार करना (~-परिरक्षणं, (न०) सन्धि या किसी इकरार नामें की शर्तों पर समर्पणं ( न० ) प्रतिष्ठा पूर्वक देना । समर्याद ( वि० ) ६ सीमावद्ध | २ समीप : निकट | 1 ३ चाल चलन में दुरुस्त । शिष्ट 1 समज (वि०) १ मैका | गंदा | अपवित्र | २ पापी समन्तं ( न० ) विद्या | मल समवकारः (पु० ) एक प्रकार का नाटक | इसकी कथावस्तु का आधार, किसी देवता या असुर के जीवन की कोई घटना होती है। इसमें चीररस प्रधान होता है। इसमें अक्सर देवासुर संग्राम का वर्णन किया जाता है। इसमें सीन होते हैं, और विमर्श सन्धि के अतिरिक्त शेष चारों सन्धियाँ रहती हैं। इस नाटक में विन्दु या प्रवेशक की आवश्यकता नहीं समझी जाती ।
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