पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/८७२

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ध प-~-संस्कृत या हिन्दी वर्णमाला के व्यञ्जन वर्षों में ३३ व वर्ण या अक्षर मुर्दा इसका उदारण- स्थान है। इसी लिए यह मूर्दम्य च कहलाता है। इसका उच्चारण कुछ लोग "श" के समान और कुछ लोग "ख" के समान करते हैं। [नोट- अनेक धातुएँ जो "स" अक्षर से आरम्भ होती हैं धातुपाठ में "" से लिखी गयी हैं, क्योंकि स्थान विशेषों में स के स्थान पर प हो जाता है। ऐसी धातुएं "स" अक्षर शब्दावली में यथास्थान पायी जायगी ] ष (त्रि०) सर्वोत्तम । सर्वोरहृष्ट षः (पु०) १ नाश १ २ अवसान | ३ अवशिष्ट । शेष बाकी ४ मुक्ति मोक्ष | 1 षट्क (वि०) छःगुना | घटकं (न०) छः का समुदाय पड्धा देखो पोढा । बंड: ) ( पु० ) १ बैल | वृषभ | २ नपुंसक पण्डः ) हिंजड़ा | ३ समूह | समुदाय | थंडकः पण्डकः (पु०) हिजड़ा खोजा नपुंसक पंडाली (स्त्री०) १ ताल तलैया | २ व्यभि पण्डालो । चारिणी| दुश्चरिशा स्त्री | पंढः ) (पु.) हिजड़ा। नपुंसक | नामदं । २ पराटः ) नपुंसकलिङ्ग | घष् (वि०) इसका प्रयोग बहुवचन में होता है। प्रथमा में इसका रूप पढ़, होता है। अक्षीणः, (= षडक्षीणः ) ( पु० ) मछली । अङ्गम् (डङ्गम् ) ( न० ) १ शरीर के ६ श्रवयवों का समुदाय। वे छः अवयव ये हैं। [[ ]] शिरो मध्य दिनुध्यते | अर्थात् दो जोंधे, दो बाहें, सिर धौर धड़ ] २ वेद के छः अङ्ग | [ यथा--1 --शिक्षा, कल्प, व्या करण, निरुक, छन्द और ज्योतिष ] ६ गौ से प्राप्त छः शुभ पदार्थ | [ यथा -गोमूत्र, गोबर, बबू (वि० S दूध, घी, दही और गोरोचन |] - अंब्रिः, (=धि:) (पु०) अमर भौंरा अधिक (पदधिक) जिसमें छः अधिक हों। - अभिक्षः, ( पु०) (= षडमिशः) बौद्धों के एक माहात्मा / -प्रशोत, (= षडशीत) (वि०) लियासीवाँ 1~-प्रशीतिः, ( = पडशीतिः ) (स्त्री०) छियासी-ग्रहः (=पडहः) (पु०) छः दिन की अवधि या समय --शाननः (=पड़ा- ननः)- वक्त्रः, (५०) (=पड़वक्त्रः) -- वदनः ( = घड्वदनः ) ( पु०) कार्तिकेय आझायः (पु०) == ( पडाम्नाय.) छः प्रकार के तन्त्र । -कर्ण, (वि०) (=पटूक) छः कानों की सुनी हुई। कर्ण, (न०) एक प्रकार की बीणा । --कर्मन, (न०) (= षटकर्मन्) माह्मण - = के छः कर्म, यथा पढ़ना, पढ़ाना, यज्ञ करना, यज्ञ कराना, दान लेना, दान देना | २ वे छः कार्य जो ब्राह्मण को जीविका के लिए विहित बतलाये गये हैं । ( यथा— - प्रतिग्रहो भिक्षा वाणिज्यं पशुपालनं कृषिकर्म तथा चेति पट् कर्मास्यप्रजन्मनः । अर्थात, उच्च, दान, भिक्षा, व्यापार, पशुपालन और खेती] ३ द्वारा किये जानेवाले छः कर्म [यथा शान्ति वशीकरण, स्तम्भन, विद्वेष, उच्चाटन और मारण]। ४ छः कर्म जो योगियों को करने पड़ते हैं। (यथा- भौतिर्वस्ती तथा नेती नौलिकी चाटकस्तथा । कपालभातीः चैतानि षट्कर्माणि समाचरेत् । ( पु०) ब्राह्मण कोण. (= षट्कोण) १ छः काने की शक्ल । २ इन्द्र का यज्र /-गवं, ( न० ) == पड्गधं ] ऐसा जुवा जिसमें बैक जोते जॉय या बैलों का समुदाय -गुण. ( =षड्गुण, ) ( वि० ) १ छःगुना | २ छः गुणों वाला-गुणं ( षड्गुणं, 19 छ: गुणों का समुदाय २ राजनीति के छः अङ्ग [ यथा-- -सन्धि, विग्रह, यान, ( चढ़ाई ), आसन ( विधाम) द्वैधीभाव और संश्रय ] -अस्थि, -