दा 3 7 ( वि० ) १ कोमल । मुलायम सुकुमार (स्त्री० ) २ चमकदार चिकना पालिस किया छोटा सूक्ष्म पतला | ४ खूबसूरत ५ ईमानदार | साफदिल का लक्षणकं ( न० ) सुपारी पुगीफल हुआ | ३ मनोहर श्लंक ) ( धा० श्रा० ) [ लड़ते ] चलना जाना : 4 लाघनं ( न० ) १ रनावा [1] २ चापलूसी । लाघा ( स्त्री० ) १ प्रशंसा सराहना | तारीफ | २ आरमश्नाधा । अभिमान ३ चापलूली ४ सेवा परिचर्या २ कामना । अमिलाए । - विपर्ययः, अभियान का अभाव लाधित (३० ऋ० ) प्रशंसित तारीफ़ किया हुआ लाष्य ( वि० ) प्रशंसनीय 1 योग्य | २ सम्मान- नीय प्रतिष्ठित ।
६ लिक्युः ( पु० ) 1 लंपट कामुक । २ चाकर लिष ( धा०प० ) [संपति ] जलाना। [लिष्यति लिए ] चिपटाना | गले लगाना। छाती से ! जगाना चिपकाना। चिपटना ३ मिलाना। जोड़ना ४ पकड़ना | ग्रहण करना। समझना। लाक. २ इलंगू } (००) [इल चलना जाना । लङ्क्र 3 1 ग्लयू (धा० उ० ) १ होला होना शिथिल होना। २ कमज़ोर होना । निर्वल होना। ३. वीजा करना। शिथिल करना। ४ चोटिल करना बध करना। मथ (वि० ) १ थयुक्त | अंधनरहित | २ ढीला | खसका हुआ । ५ बिखरे हुए (जैसे बाह ) । लाख (०प० ) [ लाखति ] घुसना व्याप्त हेरना | लाय् ( धा० श्रा० ) [ श्लाघते ] 1 सराहना | प्रशंसा करना | तारीफ करना। २ डींगे होंकना ।। प्रकृति वाला। अकना । अभिमान करता ३ चापलूसी मन् ( पु० ) कफ | बलगम । कफ की प्रकृति । करना । प्रशंसा सराहना | -श्रतीसारः, ( पु० ) कफ के प्रकोप से उत्पन हुआ अतीसार अर्थात् दक्सों का रोग :-भोजस्, ( न० ) कफ की प्रकृति-झा, 1 १ मल्लिका मोतिया का एक भेद केवड़ा | ३ महा ज्योतिभती जना पुनर्नवा | शुष्मल ( वि० ) कफ का वलगभी । चिपक लिए ( २० कृ० ) १ थालिङ्गन किया हुअर २ चिपका हुआ। चिपटा हुआ | ३ अवलम्बित | झुका हुआ ४ साहित्य में श्लेषयुक्त अर्थान जिसके दुहरे अर्थ हो (०) तङ्गन २ लगाव : चिपक । दीप ( न० ) टाँग फूलने का रोग पील पाँव | -प्रसवः ( पु० ) आन का वृण । २ उत्तम (वि०) : सहकारी | शुभ नफीस जो भटान हो । इलेप: (०) आलिंगत परिरम्भ २ जोड़ मिलान | ३ एक में लटने या लगने का भाव । ४ साहित्य में एक अलकार जिसमें एक शब्द के दो या अधिक अर्थ लिए जाते हैं। दो अर्थ वाले शब्दों का प्रयोग | सुतः मान्तः मांक: मान्तकः क (पु०) कफ | बलगम | श्लेष्मण (वि० ) रक्षगमी | कफ वाला या कफ की श्री. (स्त्री०) २ की त्रिकुट २ ( पु० ) लिसोदा मेरा बहुवार लिकु: (पु० ) लंपट | कामुक २ गुलाम चाकर ( म० ) ज्योतिर्विद्या के अन्तर्गत गणित ज्योतिष : श्लोक (घा० आा० ) [ श्लोकते ] : श्लोक बनाना : और फलित ज्योतिष पय रचना | २ प्राप्त करना। ३ त्याग देना । देना। लोकः ( पु० ) १ स्तुति | प्रशंसा | २ नाम | कीर्ति । 1 यश ३ छंद | गीत। ऐसा छंद या गीत जो प्रशंसा करने के लिये बनाया गया हो। ४ प्रशंसा करने की वस्तु ५ लोकोक्ति कहावत | ६ संस्कृत का कोई पथ जो अनुष्टुप् छन्द् में हो।