सामग्री पर जाएँ

पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/६८०

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

सूधन्य सर जाति विशेष जिसकी उत्पत्ति ब्राह्मय पिता : और क्षत्रिया माना से हुई हो । २ राजतिलक प्राप्त राजा –कर्णी, कर्पूरी, (स्त्री०) छतरी छाता -जः, ( पु० ) १ केश | बाल | २ सिंह या घोड़े की गर्दन के बाल। अयाल । - ज्योतिष, ( न० ) ब्रह्मरन्ध्र । - पुष्प: ( पु० ) सिरस का वृक्षरसः, ( पु० ) चावल की माँड़ी ---- वेष्टनं, (न० ) पगड़ी। साफा ! मुकुट | मूधन्य (वि० ) १ सिर सम्बन्धी सिर या मस्तक में स्थित २ वे वर्ण जिनका उच्चारण मूर्ध्ना से होता है। यथा --ॠ, ऋ, ट, ठ, ड ढ ण, र, प ३ मुख्य प्रधान । सर्वोकृष्ट | मूर्वा मूर्वी ( स्त्री: ) मरोड़कली नाम की बेल जिसके रेशे निकाल कर धनुष के रोदे की डोरी मूर्विका ) और क्षत्रिय का करित्र बनाया जाता है। मूल् ( धा० उभय० ) [ मूलनि-मूलते] दृढ होना । जड़ जमाना | मूल्य कारण कारिका, (स्त्री०) भट्टी। चूल्हा- कन्:, (पु०) --कच्छ (न०) व्रत विशेष इसमें मूली आदि जड़ां के काथ को पीकर एक मास तक व्रत करना पड़ता है। केशरः, ( पु० ) नीजू । -जः : पु० ) एक पौधा जो जड़ बोने से उत्पन्न होता है। बीज से नहीं जं ( न० ) अदरक | वः (5० ) कंस का नामान्तर - द्रयं – धनं 1 न० ) पूँजी 1- धातुः, ( पु० ) मज्जा 1 - निकुंतन. (वि० ) जड़ डाली नाशक-पुरुषः ( पु० ) किसी वंश का आदि पुरुष सब से पहला पुरखा जिससे वंश चला हो । – प्रकृतिः, ( स्त्री० ) संसार की वह आदम सत्ता, जिसका कि यह संसार परिणाम या विकास है। साँख्य मनानुसार "प्रधान" 1- फलंदः, ( पु० ) कटहल 1--भद्रः ( 30 ) कंस का नामान्तर 1- भृत्यः, ( पु० ) पुश्तैनी नौकर । – वचनं. ( न० ) मूल ग्रन्थ के पद्य | – वित्तं. ( न० ) पूंजी जमा । विभुजः, ( पु० ) रथ - शाकटः, ( पु० ) - शाकिनं, ( न० ) वह स्खेत जिसमें मूली गाजर आदि मौटी जड़वाले पौधे बाये जाते हैं। स्थानं, ( न० ) १ नींव । आधार २ परमात्मा । ३ पवन । हवा । —स्त्रांतसू. ( न० ) मुख्य धार अथवा किसी नदी का उद्गमस्थान | मूलकं ( पु० ) ) १ मूली | २ खाने योग्य जड़ मूलकः ( न० ) ) कंदमूल | ( पु० ) चौतीस प्रकार के स्थावर विपों में से एक प्रकार का विर - पोनिका (स्त्री० ) भूली । मूला (स्त्री० ) १ एक पौधे का नाम | २ मूल नक्षत्र | भूलिक ( दि० ) मृत सम्बन्धी भूलिकः ( पु० ) कंदमूल खाकर रहने वाला साधु मूलं ( न० ) १ जड़ | २ किसी वस्तु के सब से नीचे का भाग | ३ किसी वस्तु का छोर, जिससे वह किसी अन्य वस्तु से जुड़ी हो । ४ आरम्भ || प्रारम्भ | शुरुआत | २ आधार | नींव 1 उद्भव स्थल उत्पत्तिस्थान उपादान कारण ६ पाद- देश | तली | ७ मूलकृति ( टीका से भिन्न अथवा जिसका टीका हो) पड़ोस सामीप्य | ६ पूंजी सरमाया ।१० परम्परानुगत सेवक | ११ वर्गमूल | १२ किसी राजा को अपना निजू राज्य १३ वह बिचवाल जो उस सौदा का जिसे वह येचता है. स्वयं धनी न हो । अस्वामि विक्रेता । १४ सत्ताइस नक्षत्रों में से उन्नीसवों नक्षत्र । १५ निकुञ्ज । १६ पीपरासूल। १७ मुद्रा विशेष /- –आधारं, ( न० ) १ नाभि । २ योगानुसार मानव शरीर के षट् चक्रों में से एक, जो गुदा और | मूलिन् (पु० ) वृक्ष । शिश्न के बीच में है। ---आभं, (न० ) मूली। प्रायनं, (न० ) असली रहायस का स्थान --आशिन् ( वि० ) जड़ को मूलिन (वि० ) जड़ से उत्पन्न होने वाला । मूली ( श्री० ) छिपकली | खाकर रहने वाला । —हं, ( न० ) मूली उच्छेदः, मूलेरः ( पु० ) १ राजा । २ जटामांसी | वालछुट | ( पु० ) सर्वनाश । विनाश - कर्मन, ( स० ) | मूल्य (वि० ) 1 जद से उखाड़ने योग्य | २ खरीदने इन्द्रजाल | जावू ।-कारणं, (न० ) उपादान योग्य | सं० श० कौ०८५