पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/६२

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अम्यायिन् अन्यायिन् (वि० ) अनुचित । अयथार्थं । अन्याय्य ( वि० ) : अयथार्थ | आईन विरुद्ध । २ अनुचित | बेडौल | भद्दा | ३ अप्रामाणिक | न्यून (वि० ) समूचा। समस्त – (वि० ) जिसका कोई अङ्ग कम बढ़ न हो । न्ये (अन्य ) दूसरे दिन या अगले दिन । २ एक दिन। एक बार। अन्योन्य (अन्य ) १ परस्पर आपस में प्राय ( वि० ) परस्पर अविलम्बित | युक्तिः ( श्री० ) वार्तालाप । बातचीत। अन्योन्याभावः (पु० ) पारस्परिक अभाव । अन्योन्याश्रय (वि० ) आपस का सहारा । एक दूसरे की अपेक्षा सापेक्षज्ञान | ( ५५ ) अन्वंचू ( वि० | १ पीछे जाना | पछियाना | अनुस रण । अन्वासनम् धन्ववायः ( पु० ) जाति | वंश | कुल । श्रन्यवेक्षा (स्त्री०) सम्मान | आदर । अन्वटका (स्त्री०) साग्निकों के लिये एकसातृक श्राद्ध, जो अष्ठका के अनन्तर पूस, माघ, फागुन और आश्विन की कृष्णा नवमी को किया जाता है। अन्वष्टमदिशं (अव्यया० ) उत्तर पश्चिम के कोण की ओर । अन्वयः (पु०) अनुयायी चाकर। २ सम्बन्ध | सङ्गति । रिश्तेदारी | ३ व्याकरणानुसार वाक्य की शब्द योजना | ४ आति । वंश | कुल | ६ वंशवाले । कुलवाले । ५ न्याय में कार्य करण सम्बन्ध -- आगत ( वि० ) वंशपरम्परागत --- झः ( पु० ) वंशावाली जानने वाला । - व्यतिरेकः ( go ) निश्चय पूर्वक हाँ या ना सूचक कथित वाक्य ५ नियम और अपवाद -व्याप्तिः ( स्त्री० ) स्वीकारोक्ति । जहाँ धूम वहाँ अग्नि-इस प्रकार की व्याप्ति | अन्वर्थ ( वि० ) १ अर्थ के अनुसार १२ सार्थक अर्थयुक्त । अन्ववसर्गः ( पु० ) कामयारानुज्ञा | यथेच्छ आच- रण की अनुमति । यथेच्छाचार | अन्ववसित (वि० ) सम्बन्धयुक्त | बंधा हुआ । जकड़ा हुआ । (अन्यया० ) प्रति दिन । दिन दिन । धन्वाख्यानं ( म० ) पूर्वकथित विषय की पीछे से व्याख्या | अन्वत ( वि० ) प्रत्यक्ष | साक्षात् । अन्वतम् ( न० ) पीछे से पीछे । मुरम्त ही। पीछे से। तुरन्त । सीधा, किसी के बीच में होकर नहीं। अन्वक् (अन्यया० ) तदनन्तर । पीछे से अनुकूलता से पीछे | अन्यादेशः (पु० ) एक आज्ञा के बाद दूसरी भाशा | किसी कथन की द्विरुक्ति । अन्वाधानं ( न० ) हवन अग्नि पर समिधाओं को रखना । अवधिः १ अमानत जो किसी अन्य पुरुष को इस लिये सौपी जाय कि, अन्त में वह उसे उसके न्यायानुमोदित अधिकारी को दे दे ।२ दूसरी चमा- नत । ३ सतत परिताप, पश्चाताप या पछतावा अन्वाधेयं ) ( न० ) एक प्रकार का सीधन, जो अन्वाधेयकं । स्त्री को विवाह के बाद पतिकुल या पितृकुल अथवा उसके अन्य कुटुम्बियों से ग्राह होता है। अन्वाचयः (५० ) मुख्य कार्य की सिद्धि के साथ साथ प्रधान (गौण) की भी सिद्धि । जैसे एक काम के लिये जाते हुए को, एक दूसरा वैसा ही साधारण काम बतला देना । अन्वादिष्ट (०) पीछे त । पुनर्नियुक्त | २ गौण | उपयोगी । अवारम्भः ( पु० ) ( स्पर्श | किसी विशेष धर्म्मा- अन्वारम्भम् ( न० ) ) नुष्ठान के बाद यजमान का स्पर्श या पीठ ठोकना यह जताने को कि, उसका कृत्य सुफल हुआ। अन्वारोहगां ( न० ) किसी सती स्त्री का पति के शव के साथ या पीछे भस्म होने के लिये चिता पर चढ़ना । अन्वासनम् (न० ) सेवा पूजा २ एक के बैठने के बाद दूसरे का बैठना । ३ दुःख। शोक |