पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/४९३

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परेत परेन ( व० ० ) सृत मरा हुआ सवा के लिये गया हुआ ! परेतः ( यु० ) प्रेन भूत ! - भट्ट - राज्, ( पु० ) यम-भूमिः, ( स्त्री० ) वासः, ( पु० ) श्मशान कबरस्तान | परद्यवि परेधस् ( ६ ) } (अव्यया०) अन्यदिवस । दूसरे दिन । परेण्डकाः (खी० } कई चार की व्यायी हुई गाय परोक्ष (वि० ) १ दृष्टि से बाहिर | अगोचर | अनुप | स्थित २ गुप्त। अनजान । अपरिचित । - भोगः, ( पु० ) वस्तु के मालिक की अनुपस्थिति में उसकी वस्तु का उपभोग 1 -वृत्ति, (दि० ) दृष्टि के | ओझल रहने वाला । परोक्षं ( न० ) व्याकरण में भूतकाल । अनुपस्थिति ) पर्यंत पर्यन्त पशु जो हर्वो के सुरमुट में रहै रुह ( पु० ) असन्तऋतु । -लता, (स्त्री०) पान की वेल - वीटिका, (स्त्री० ) सुपारी के टुकड़े जो पान की बीड़ी में रखे जाते हैं। शय्या, (स्त्री०) पत्तों का विछौना - शाला, (स्त्री० ) पर्णकुटी । पत्तों को बनी झांपड़ी । अगोचरत्व । २ प: (०) पाशवृ पल (वि० ) जहाँ पत्तों का बाहुल्य हो । पत्तों की इफरात वाला ! पसिः (पु० ) १ जलविहार-भवन | घर जो पानी के बीच में बना हो । २ कमल | ३ शाक ४ शृङ्गार उबटन | पणिन् ( पु० ) वृक्ष | पर्णिल (बि० ) देखो पल । पद् (धा० आत्म०) [ पर्वते ] पादना| अपान वायु छोड़ना । परोक्षः ( पु० ) संन्यासी । साधु । परोष्टिः परायी } (स्त्री० ) तिलचट्ठा । झींगुर। पईः ( पु० ) १ केशसमूह | घने वाल । २ अपानवायु । पाद | गोज़ | पर्जन्यः (४०) १ बादल जो पानी बरसावे । बादल जो पर्यः ( पु० ) १ छोटी घास । २ पडुपीठ । लंगों के मे | ३ इन्द्र पयते ] सब्ज्ञ गर्जना करें। बादल | २ वृष्टि पर्ण ( धा० उभय० )[ पर्णयति, रहने का स्थान। एक पहिये की गाड़ी जिसके सहारे | पर्परीक ( पु० ) १ सूर्य | २ अग्नि । ३ तालाव । पङ्गु चले । ३ मकान । करना । हरा भरा करना । जलाशय । पर्यक् (अव्यया० ) चारो ओर। हर ओर। पर्यंकः ) ( पु०) १ पलंग | पल्का | खाट । चारपाईँ । पर्ण ( न० ) १ डैना । बाज़ळू । २ वाण में लगे पंख । ३ पत्ता ४ पान | ताम्बुल । -प्रशनं, ( न० ) पत्ते खा कर रहना । —उटजं, (न० ) पत्तों की झोंपड़ी। पर्णकुटी–कारः, (पु.) तमोली । पान बेचने वाला। -टिका, (स्त्री०) कुटी, (स्त्री०) झोंपड़ी जो पत्तों से छायी गयी हो। –कृच्छू, ( पु० ) एक प्रकार का प्रायश्चित जिसमें प्रायश्चित्ती को पाँच दिन पत्तों का काढ़ा और कुश ख़ाकर रहना पर्यटनम } (४०) अगए। इधर उधर की मटरगश्त । होता है। -खण्डः, (५०) विना फलों का वृक्ष | - खगड ( न० ) पत्तों का समूह ।-चीरपटः, ( पु० ) शिव जी का नामान्तर । -चोरकः, (पु० ) एक प्रकार का गन्धद्रव्य । - नरः, ( पु० ) पत्तों का पुतला जो अप्राप्त शब के स्थान में रख कर फूंक दिया जाता है। - - मेदिनी, ( स्त्री० ) प्रियडुलता । —भोजनः, ( पु० ) बकरा --- ( पु० ) शिशिरऋतु । - मृगः, ( पु० ) कोई पर्यनुयोगः ( पु० ) दूधणार्थं जिज्ञासा | किसी विषय का खण्डन करने के लिये पूँछताछ या अनुसन्धान | पर्यंत, पर्यन्त } (वि० ) तक । तलक । लौं । टने की वस्तु विशेष | ३ योगासन विशेष - बन्धः, ( पु० ) वीरासन विशेष /-भोगिन, ( पु० ) सर्प विशेष । 1 पर्यतः ) ( पु० ) १ परिधि | व्यास | ३ सीमा । पर्यन्तः किनारा । बाढ़ । छोर पार्व। बगल । ४ समाप्ति अवसान | नातमा । -देशः, ८३ तरफ़