पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/४७७

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पयस्विनी स्विनी ( स्त्री० ) दुधार गो बकरी | ४ रात | अधिक (०) समुद्रधन रः (पु० ) कत्ये का दृश ( स्त्री० ) एक नदी का नाम जो विन्ध्याचल से निकलती है और चित्रकूट के नीचे बहती हुई जाती है। २ मड़ा ( ४७० ) ३ ई } ( वि० ) १ दूसरा | भिन्न | और। स्वातिरिक्त | २ दूर अलग ३ परे। उस ओर ४ पीछे का । बाद का। दूसरा। आगे का। बाद पश्चात् २ उच्चतर ६ सर्वोच सब से बड़ा । सब से अधिक प्रसिद्ध विख्यात मुख्य । श्रेष्ठ | प्रधान | ७ अपरिचित और अजनबी ८ वैरी । शत्रु | दुश्मन विरोधी ६ चढ़ती | वचत | छूटा हुआ बचा हुआ १० अन्तिम । आखीर का अन्त का ११ प्रवृत्त लीन सत्पर - -अङ्गम् (२० ) शरीर का पिछला भाग - अङ्गन्दम् (न० ) शिव जी का नामान्तर - अदनम् ( न०) फारस या अरम का घोड़ा - अधिकारचर्चा ( स्त्री० ) अनधिकार हस्तक्षेप | छेड़वाद-ग्रन्तः (पु० ) मृत्यु अन्ताः, - ( पु० बहु० ) एक मानव जाति विशेष । अन्तकः ( पु०) शिव जी का नामान्तर ।--अन्न, (वि०) दूसरे के धन्न पर निर्वाह करने वाला - अम्, (न०) दूसरे का अश्न / अपर, (वि०) दूर और निकट दूर और समीप । २ पहिला और पिछला ३ पूर्व और परे ४ सबेरी और अवेरी २ च और नीच ६ श्रेष्ठ और निकृष्ट | --अपरः, ( यु० ) मध्यम श्रेणी का गुरु अमृतं, (न० ) वर्षा मेह-अयण, (वि०) --प्रयन, (वि०) १ भक्त | अनुरक्त । २ निर्भर | अधीन। ३ लीन हूवा हुधा ४ सम्बन्धयुक्त । १ सहायक-श्रयणम् (न०) १ अन्तिम उपाय | मुख्य उद्देश्य | सपेंच लक्ष्य । २ सार। (वैदिक) हद भक्ति । - अर्थ, ( वि० ) १ अन्य उद्देश्य । या अर्थ वाला २ दूसरे के लिये किया हुआ । -अर्थः ( पु० ) १ सर्वाधिक लाभ २ परमार्थ । - . ३ मुख्य सब से बढ़ कर अर्थ ४ सब से बढ़ कर पर । पदार्थ अर्थात् सीप्रसङ्ग अथम् ( न० ) अर्थ (अव्यया० ) दूसरे के लिये 1, ( ४० ) १ दूसरा भाग। उत्तराई २ सर्वोच्च संख्या विशेष । अर्ध्य, (वि० ) 1 और आगे की ओर का संख्या में बहुत चाने का । २ सर्व- श्रेष्ठ सर्वोत्तम ३ अत्यन्त मूल्यवान | ४ सब से अधिक सुन्दरम् ( न० ) १ अधिक से अधिक । २ अनन्त या असीम संख्या - ध्रुवर, ( वि० ) १ दूर और नज़दीक २ सबेरी और अवेरी । ३ पहले और पीछे ४ ऊँचा और नीचा २ परम्परागत | ६ सब शामिल किये हुए /- ध्यवरा, (स्त्री० ) सन्तति । भौजाद ।--अवरं, ( न० ) १ कार्य और कारण २ विचार का अहः, समूचा विस्तार ३ संसार ४ पूर्णता 1- ( पु० ) दूसरे दिन :~-ध्य (पु० ) दोपहर के बाद। दिन का उत्तरार्द्ध काल ---भागमः, ( पु० ) शत्रु का हमला :--प्राचित, ( वि० ) दूसरे द्वारा पाला पोसा हुआ। आाचितः, (पु०) गुलाम दास। -आत्मन, (पु०) परब्रह्म- -प्रायत्त (वि० ) अधीन । परमुखापेक्षी । दूसरे पर निर्भर । --प्रायुस्, (न० ) ब्रह्म का सामान्तराषिः, (५० ) १ कुबेर का नामान्तर | २ विष्णु का नामान्तर --प्राश्रय, ( वि० ) दूसरे पर निर्भर ।-आश्रयः, ( पु० ) १ पराधीन २ शत्रु का प्रतिनिवर्तन | लौटना ● ---आश्रया, ( स्त्री० ) वह वृक्ष जो दूसरे वृक्ष पर उगे ; चंदा ! -~आसङ्गः, ( यु० ) पराधीन | दूसरे पर निर्भर । -- आस्कंदिन, (पु० ) चोर | डॉकू -इतर (वि०) १ कृपालु । २ निज का । --ईशं, (न० ) १ ब्रह्म की उपाधि । २ विष्णु का नामान्तर ।-इष्टिः, ( पु०) ब्रह्म/-उत्कर्षः ( पु० ) दूसरे की समृद्धि-उपकारः, (g० ) दूसरों की भलाई।-उपकारिन्, (वि० ) उप- कारी। दूसरों पर दया करने वाला।-उपजापः, ( go ) शत्रुओं में भेदभाव उत्पन्न करने वाला । --उपवेशः, ( पु० ) दूसरों को शिक्षा या नसी- हत। --उपरुद्ध, (वि०) शत्रु द्वारा घेरा हुआ। -कढा, ( श्री० ) दूसरे की स्त्री- - पवित,