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पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३९३

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( ३८६ दूध ( वि० ) अपवित्र करन वाला खराब करने वाला यथा पतिप" दूषक (वि० ) [ श्री० - दूषिका ] भ्रष्ट करने वाला। नष्ट करने वाला । २ पापी दूषकः ( पु० ) कुपथ में प्रवृत्त करने वाला। स्त्रियों का सतीत्व नष्ट करने वाला २ बदनास मनुष्य दूपां (न० ) ६ दोष । २ हानिकारक | ३ गाली। कुवाच्य | ४ अपवाद अपकीर्ति [4] दृश्ययः ( पु० ) राज्य पक्षीय एक प्रधान राक्षस जिसे जनस्थान में श्रीरामचन्द्र जी ने मारा था। ) द्वशू शरीर का पु J - 1 श्रम् (न०) हीरा बुधि (वि० ) मज़दूत तरकस रखने वाला --काण्डः -प्रन्थिः, (पु०) बाँसाह (वि०) मज़बूती से पकड़ने वाला। दंशकः, (पु०) शार्क नामक समुद्री जन्तु विशेष-द्वार, (वि०) मजबूती से द्वार को बंद रखने वाला । धनः- (पु०) बुध देव की उपाधि -- धन्वन्धन्विन (पु०) अच्छा तीरन्दाज्ञ /-निश्चय, ( वि० ) 1 हद सङ्कल्प । -~नीरः, फलः, (स्त्री० ) नारियल का वृक्ष /- प्रतिशं, (न०) वचन या प्रतिज्ञा का पक्का।-- प्ररोहर (पु०) गूलर का पेड़ -प्रहारिन् (वि०) १कस कर प्रहार करने वाला २ ठीकल वेधने वाला ।-भक्ति, (वि० ) निमकडलाल सथा। - मति (वि०) अपने विचार का पक्का-मुष्टि (वि०) १ सूम कंजुस २ मजबूती से मुट्ठी बाँधने वाला /–मुटिः ( सी० ) तलवार /- मूलः, (पु०) नारियल का पेड़ - लोमन, (पु०) जंगली सुअर - चैरिन (पु० ) कहाशून्य शत्रु बेरहम दुश्मन-व्रत, (वि०) १ धर्मा नुष्ठान में दृढ़ २थचल सच्चा ३ अध्यवसायी । --सन्धि, ( वि० ) १ मजबूती से मिले हुए। २ तरह जुड़े हुए।-सौहद् (वि० मैत्री में - 1 दूपी दूषिः } ( स्वी० ) आँख का कीचड़ । दूषिका ( स्त्री० ) 1 पेंसिल चित्रकार की कूची | २ चॉवल विशेष३ आँख का कीचड़ | दूषित ( वि० ) भ्रष्ट नष्ट । विगड़ा हुआ | २ चोटिल | २ टूटा फूटा चरित्रभ्रष्ट ४ अपकी र्तित । कलङ्कित | ५ मिथ्या दोषारोपित बदनाम किया हुआ । दूण्य ( दि० ) भ्रष्ट होने योग्य फलद्ध लगाने योग्य दूष्यं (न०) १ पीप । राल । २ विप | ३ राई | 9 वस्त्र | कपड़ा | २ शामियाना| तंबू | दूपया ( स्त्री० ) हाथी का चमड़े का जेरबंद | अचल या बढ़ | हू ( धा० आत्म० ) [ द्रियते, छूत, - दिषिते ] | हृतिः (पु० स्त्री०) १ पानी भरने का चमड़े का ढोल । २ - - सम्मान करना आदर करना। पूजा करना । मी २ चर्म खाल । ४ धौंकनी हरिः हंहू ( था० परस्मै०) [संहति इंहित] : मज़बूत करना । ( पु० ) कुत्ता । दृढ़ करना | २ दृढ़ होना १ मे बढ़ना । अधिक | द्वन्फूः (स्त्री०) १ सौंपिन | २ वज्र । होना | द्वन्भू ( श्री०) १ इन्द्र का वज्र २ सूर्य ३ राजा । ४ यम । द्वप (धा० परस्मै०) [दर्पति, दर्पयति, दर्पयते] प्रकाश करना । जलाना। बाजना | [ द्वष्यति, - दूप्त ] १ अभिमान करना। अकड़ना । २ अत्यन्त प्रसन्न होना ३ थापे में न रहना। द्रुप्त ( वि० ) १ थभियानी | अकड़बाज । २ पागल । मदमाता आततायी। द्वन (वि०) अभिमानी अकड़वाज़ | मजबूत हित (व० कृ०) १ मज़बूत किया हुआ हड़ किया हुआ। २ बड़ा हुआ। द्वकं (न०) चित्र | रन्ध्र | छेद टूट (वि०) मजबूत अचल अथक २ पोड़ा । ठोस ३ स्थापित ४ अचन्चल | २ दवता से बँधा हुआ। ६ कसा हुआ ७ घना बड़ा अत्यधिक शक्तिशाली। कठोर ताकत वाला । इचिमड़ा | १० ऐसा कदा जो कठिनाई से लचाया - विश्वस्त १३ निश्चित अवश्य ।। - अंग, (चि०) जा सके। ११ ठहरने वाला | चलाऊ | १२ | दुश् (धा० परस्मै० ) [पश्यति, - दृष्ट ] देखना । निहा- रना। अवलोकन करना। पहचानना ।